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सामाचारी- पौरिसी का कालमान
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बारह महीनों में पोरिसी के परिमाण का खुलासा इस प्रकार है -
दिन या रात्रि के चौथे पहर को पोरिसी कहते हैं। शीतकाल में दिन छोटे होते हैं और रातें बड़ी। जब रातें लगभग पौने चौदह घण्टे की हो जाती हैं तो दिन सवा दस घण्टे का रह जाता है। उष्णकाल में दिन बड़े होते हैं और रातें छोटी। जब दिन लगभग पौने चौदह घंटे के होते हैं तो रात सवा दस घण्टे की रह जाती है। तदनुसार शीतकाल में रात्रि की पोरिसी बड़ी होती है और दिन की छोटी। उष्णकाल में दिन की पोरिसी बड़ी होती है और रात की छोटी। ___ पोरिसी का परिमाण घुटने की छाया से जाना जाता है। पौष की पूर्णिमा अथवा सब से छोटे दिन को जब घुटने की छाया चार पैर हो तब पोरिसी समझनी चाहिए। इस के बाद प्रति सप्ताह एक अंगुल छाया घटती जाती है। बारह अंगुल का एक पैर होता है। इस प्रकार आषाढ़ी पूर्णिमा अर्थात् सब से बड़े दिन को छाया दो पैर रह जाती है। इस के बाद प्रति सप्ताह एक ' अंगुल छाया बढ़ती जाती है। इस प्रकार पौषी पूर्णिमा के दिन छाया दो पैर रह जाती है। जब सूर्य उत्तरायण होता है अर्थात् मकर संक्रांति से दिन से छाया बढ़नी शुरू होती है और सूर्य के दक्षिणायन होने पर अर्थात् कर्क संक्रांति से छाया घटनी शुरू होती है। बारह महीनों के प्रत्येक सप्ताह में पोरिसी. की छाया जानने के लिए तालिका नीचे दी जाती है -
(१) श्रावण मास (२) भाद्रपद मास सप्ताह पैर — अंगुल पैर अंगुल प्रथमः २ १ २. ५ द्वितीय २ २ तृतीय २ ३ २ ७ चतुर्थ २ ४ (३) आश्विन मास (४) कार्तिक मास सप्ताह पैर अंगुल पैर अंगुल प्रथम २
३ १ द्वितीय २ १० ३ २ तृतीय २ ११. ३ ३ चतुर्थ ३ ० . . ३ . ४
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