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________________ उत्तराध्ययन सूत्र - पच्चीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 कुल में उत्पन्न हुआ था और भावयज्ञ के अनुष्ठान में रत था अर्थात् अहिंसा आदि पांच महाव्रतों का यथाविधि पालन करने वाला था। इस कथन से द्रव्य यज्ञ की निष्कृष्टता अथवा निषेध सूचन किया गया है। यज्ञ के दो भेद हैं - एक द्रव्य यज्ञ, दूसरा भाव यज्ञ। इनमें द्रव्य यज्ञ श्रौत, स्मार्त भेद से दो प्रकार का है। श्रौतयज्ञ के वाजपेय और अग्निष्टोमादि अनेक भेद हैं। स्मार्त यज्ञ भी कई प्रकार के हैं। इन द्रव्ययज्ञों में जो श्रौतयज्ञ हैं उनमें तो पशुहिंसा अवश्य करनी पड़ती है और जो स्मार्त यज्ञ हैं वे पशु आदि त्रस जीवों की हिंसा से तो रहित हैं परन्तु स्थावर जीवों की हिंसा उनमें भी पर्याप्त रूप से होती है और जो भाव यज्ञ है, उसमें किसी प्रकार की हिंसा की संभावना तक भी नहीं है। उसी को यम यज्ञ कहते हैं। मुनि जयघोष पूर्वाश्रम में ब्राह्मण होते हुए भी सर्वविरति रूप साधु धर्म में दीक्षित हो चुके थे। इसलिए वे . सर्वप्रकार के द्रव्ययज्ञों के त्यागी और भावयज्ञ के अनुरागी थे। जयघोष मुनि का पदार्पण इंदियग्गाम-णिग्गाही, मग्गगामी महामुणी। गामाणुगामं रीयंतो, पत्तो वाणारसिं पुरिं॥२॥ कठिन शब्दार्थ - इंदियग्गाम णिग्गाही - इन्द्रिय समूह का निग्रहकर्ता, मग्गगामी - मोक्षमार्ग का अनुगामी, महामुणी - महामुनि, गामाणुगाम - ग्रामानुग्राम, रीयंते - विचरण करता हुआ, पत्तो - पहुँचा, वाणारसिं पुरिं - वाणारसी नगरी में। भावार्थ - इन्द्रियों के समूह को वश में रखने वाले, मोक्ष-मार्ग में प्रवृत्ति करने वाले वे विजयघोष महामुनि ग्रामानुग्राम विहार करते हुए वाणारसी नगरी को प्राप्त हुए। वाणारसीए बहिया, उजाणम्मि मणोरमे। फासुए सिजसंथारे, तत्थ वास-मुवागए॥३॥ कठिन शब्दार्थ - वाणारसीए - वाणारसी के, बहिया - बाहर, उज्जाणम्मि - उद्यान में, मणोरमे - मनोरम, फासुए - प्रासुक (निर्दोष-निर्जीव), सिज्ज-संथारे - शय्या और संस्तारक, वासमुवागए - वहां उन्होंने निवास किया। भावार्थ - उस वाणारसी नगरी के बाहर प्रासुक शय्या-संथारे वाले एक मनोहर उद्यान में वास किया अर्थात् ठहरे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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