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________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र ते णं मणुया हक्कारेणं दंडेणं हया समाणा लज्जिया, विलज्जिया, वेड्डा, भीया, तुसिणीया, विणओणया चिटुंति। तत्थ णं खेमंधर ६, विमलवाहण ७, चक्खुमं ८, जसमं ६, अभिचंदाणं १० - एएसिं पंचण्हं कुलगराणं मक्कारे णामं दंडणीई होत्था। ___ते णं मणुया मक्कारेणं दंडेणं हया समाणा (लज्जिया, विलज्जिया, वेड्डा, भीया, तुसिणीया, विणओणया) जाव चिट्ठति। तत्थ णं चंदाभ ११, पसेणइ १२, मरुदेव १३, णाभि १४, उसभाणं १५ - एएसिं णं पंचण्हं कुलगराणं धिक्कारे णाम दंडणीई होत्था। ते णं मणुया धिक्कारेणं दंडेणं हया समाणा जाव चिट्ठति। भावार्थ - उन पन्द्रह कुलकरों में से सुमति, प्रतिश्रुति, सीमंकर, सीमंधर तथा क्षेमकर नामक पाँच कुलकरों की हकार संज्ञक दण्डनीति होती है। उस समय के मनुष्य हकार मात्र - 'हा', यह क्या किया - इतने कथन रूपी दण्ड से अपने को आहत मानते हैं। वे स्वयं ही क्रमशः लज्जित, विशेष रूप से लज्जित, अतिशय रूप से लज्जित अनुभव करते हैं। भीति मानते हैं, चुप हो जाते हैं, विनयाभिनत हो जाते हैं। __ कुलकरों में से क्षेमंधर, विमलवाहन, चक्षुष्मान्, यशस्वान् तथा अभिचंद्र नामक पांच कुलकरों की मकार संज्ञक दण्डनीति होती है। उस काल के मनुष्य मकार - ‘मा कुरू' - ऐसा मत करो, इतने कथन मात्र से ही अपने आपको दण्डित मानते हुए यावत् विनयाभिनत हो जाते हैं। चंद्राभ, प्रसेनजित, मरूदेव, नाभि एवं ऋषभ - इन अंतिम पाँच कुलकरों की धिक्कार नामक दण्डनीति होती है। उस समय के मनुष्य ‘हा, धिक' - इस कर्म के लिए तुम्हें धिक्कार है, इतना कहने मात्र से ही अपने आपको दण्डाभिहत मानते हैं यावत् विनयाभिनत हो जाते हैं। भगवान् ऋषभ : गृहवास : श्रमण-दीक्षा (३७) णाभिस्स णं कुलगरस्स मरुदेवाए भारियाए कुच्छिंसि एत्थ णं उसहे णामं अरहा कोसलिए पढमराया, पढमजिणे, पढमकेवली, पढमतित्थयरे, पढमधम्मवरचाउरंत-चक्कवट्टी समुप्पज्जित्था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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