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________________ ७० जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र तीसे णं भंते! समाए पच्छिमे तिभाए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे होत्था? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव मणीहिं उवसोभिए, तंजहा - कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहिं चेव। ____ तीसे णं भंते! समाए पच्छिमे तिभागे भरहे वासे मणुयाणं केरिसए आयारभावपडोयारे होत्था? गोयमा! तेसिं मणुयाणं छव्विहे संघयणे, छव्विहे संठाणे, बहूणि धणुसयाणि उड्ढे उच्चत्तेणं, जहण्णेणं संखिज्जाणि वासाणि, उक्कोसेणं असंखिज्जाणि वासाणि आउयं पालेंति, पालित्ता अप्पेगइया णिरयगामी, अप्पेगइया तिरियगामी, अप्पेगइया मणुस्सगामी, अप्पेगइया देवगामी, अप्पेगइया सिज्झंति, जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। शब्दार्थ - विभज्जइ - विभाजित किया गया है, जहण्णेणं - जघन्य, संखिज्जाणि - संख्यात। __भावार्थ - हे आयुष्मन् श्रमण गौतम! द्वितीय आरक के तीन सागरोपम कोड़ाकोड़ी काल बीत जाने पर अवसर्पिणी काल का सुषम-सुषमा नामक तीसरा आरक प्रारंभ होता है। उसमें अनंत वर्ण पर्याय यावत् अनंत उत्थान-कर्म-बल-वीर्य-पुरुषकार-पराक्रम-पर्याय - इनका अनंत गुण हानिक्रम से ह्रास होता जाता है। यह आरक तीन भागों में विभक्त है - १. प्रथम त्रिभाग २. मध्यम त्रिभाग ३. अन्तिम त्रिभाग। हे भगवन्! जंबूद्वीप में इस अवसर्पिणी के सुषम-सुषमा आरक के प्रथम और मध्यम त्रिभाग का आकार-प्रकार या स्वरूप कैसा होता है? हे आयुष्मन् श्रमण गौतम! उस समय भूमिभाग अत्यंत समतल एवं रम्य होता है। उसका वर्णन पहले की ज्यों योजनीय है। इतना अन्तर है - उस समय के मनुष्यों के शरीर की ऊँचाई दो हजार धनुष परिमित होती है। उनमें पसलियों की संख्या चौसठ होती है। एक-एक दिन के अंतर के पश्चात् उनमें आहार की इच्छा पैदा होती है। उनकी स्थिति-आयु एक पल्योपम की होती है। वे उन्नासी रात्रि-दिवस पर्यन्त अपने यौगलिक शिशुओं का लालन पालन एवं संरक्षण करते हैं यावत् देहत्याग कर स्वर्गगामी होते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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