SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र यहाँ यह भी स्मरणीय है कि यौगलिकों के आगामी भव का आयुबंध उनके मरण से छह मास पूर्व होता है, जब वे युगल को जन्म देते हैं । अवसर्पिणी : सुषमा काल ६८ (३३) ती णं समाए चउहिं सागरोवम-कोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं, अणंतेहिं गंधपज्जवेहिं, अणंतेहिं रसपज्जवेहिं, अनंतेहिं फासपज्जवेहिं, अणंतेहिं संघयणपज्जवेहिं, अणंतेहिं संठाणपज्जवेहिं, अणंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं, अणंतेहिं आउपज्जवेहिं, अणंतेहिं गुरुलहुपज्जवेहिं, अनंतेहिं अगुरुलहुपज्जवेहिं, अणंतेहिं उट्ठाणकम्मबलवीरियपुरिसक्कारपरक्कमपज्जवेहिं, अनंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे परिहायमाणे एत्थ णं सुसमा णामं समाकाले पडिवज्जिसु समणाउसो ! | जंबूद्दीवे णं भंते! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमाए समाए उत्तम - कट्ठपत्ताए भरस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे होत्था ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा तं चेव जं सुसमसुसमाए पुव्ववण्णियं, णवरं णाणत्तं चउधणुसहस्समूसिया, एगे अट्ठावीसे पिट्ठकरंडयसए, छट्टभत्तस्स आहारट्ठे, चउसट्ठि राइंदियाइं सारक्खंति, दो पलिओमाई आऊ सेसं तं चेव । तीसे णं समाए चउव्विहा मणुस्सा अणुसज्जित्था, तंजहा - एका १, पउरजंघा २, कुसुमा ३, सुसमणा ४ । शब्दार्थ - छट्टभत्त - दो दिन, राइंदियाइं - रात्रि - दिवस, अणुसज्जित्था - कहे गए हैं। भावार्थ - हे आयुष्मन् गौतम ! अवसर्पिणी के प्रथम आरक का जब चार सागर कोड़ाकोड़ी काल बीत जाता है, तब अवसर्पिणी काल का सुषमा संज्ञक दूसरा आरक शुरू होता है। उसमें अनंत वर्ण-गंध-रस-स्पर्श-पर्याय, अनंत संहनन- संस्थान - उच्चत्व - आयु पर्याय, अनंत गुरु-लघु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy