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________________ प्रथम वक्षस्कार - ऋषभकूट हे भगवन! उत्तरार्द्ध भरत क्षेत्र की आकृति या स्वरूप किस प्रकार का है? हे गौतम! उसका भूमिभाग अत्यधिक समतल तथा सुंदर है। वह मुरज के उपरितन भागचर्मपुट जैसा समतल है यावत् कृत्रिम - अकृत्रिम मणिओं से सोभित है। हे भगवन् ! उत्तरार्द्ध भरत में मनुष्यों का आकार किस प्रकार का है? हे गौतम! उत्तरार्द्ध भरत में मनुष्यों का संहनन अनेक प्रकार का है यावत् उनमें से कतिपय समस्त कर्मों का क्षय कर सिद्ध होते हैं यावत् सब दुःखों का अंत करते हैं। ऋषभकूट (२३) कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे उत्तरडभरहे वासे उसभकूडे णामं पव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! गंगाकुंडस्स पच्चत्थिमेणं, सिंधुकुंडस्स- पुरत्थिमेणं, चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे उत्तरडभरहे वासे उसहकूडे णामं पव्व पण्णत्ते - अट्ठ जोयणाई उड्डुं उच्चत्तेणं, दो जोयणाइं उव्वेहेणं, मूले अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं, मज्झे छ जोयणाइं विक्खंभेणं, उवरिं चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं, मूले साइरेगाइं पणवीसं जोयणाइं परिक्खेवेणं, मज्झे साइरेगाई अट्ठारस जोयणाई परिक्खेवेणं, उवरिं साइरेगाई दुवालस जोयणाइं परिक्खेवेणं । मूले विच्छिण्णे, मज्झे संक्खित्ते, उप्पिं तणुए, गोपुच्छसंठाणसंठिए, सव्वजंबूणयामए, अच्छे, सण्हे जाव पडिरूवे । कुछ पाठान्तरम् - मूले बारस जोअणाइं विक्खंभेणं, मज्झे अट्ठ जोअणाई विक्खंभेणं, उप्पिं चत्तारि जाई विक्खंभे, मूले साइरेगाई सत्तत्तीसं जोअणाई परिक्खेवेणं, मज्झे साइरेगाइं पणवीसं जोअणाई परिक्खेवेणं, उप्पिं साइरेगाई बारस जोअणाई परिक्खेवेणं । (यह मूल में बारह योजन, मध्य में आठ योजन तथा ऊपरितन भाग में चार योजन चौड़ा है। इसकी परिधि मूल में सैंतीस योजन से कुछ अधिक, मध्य में पच्चीस योजन से कुछ अधिक तथा ऊपरितन भाग में बारह योजन से अधिक है।) Jain Education International ३५ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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