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________________ सप्तम् वक्षस्कार मास, पक्ष आदि ५. अभिवर्द्धित संवत्सर जिसमें क्षण, लव, दिन, ऋतु सूर्य के तेज से तपे रहते हैं, जिसमें नीचे के स्थान पानी से भरे रहते हैं, उसे अभिवर्द्धित संवत्सर कहते हैं । . हे भगवन्! शनैश्चर संवत्सर कितनी तरह का कहा गया है ? हे गौतम! वह अट्ठाईस तरह का कहा गया है - अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, सतभिषक, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती, अश्विनी, भरिणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा एवं उत्तराषाढ़ा । अथवा शनैश्चर महाग्रह तीस संवत्सरों वर्षों में समग्र नक्षत्र मंडल को पार करता है। वह काल शनैश्चर संवत्सर के नाम से अभिहित हुआ है। विवेचन अधिक मास होने के कारण अभिवृर्द्धित संवत्सर के दो पर्व पक्ष अधिक होते - हैं इसलिए चौबीस के स्थान पर छब्बीस पर्व कहे गये हैं । Jain Education International मास, पक्ष आदि ४२६ (१८५) एगमेगस्स णं भंते! संवच्छरस्स कइ मासा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुवालस मासा पण्णत्ता, तेसि णं दुविहा णामधेज्जा पण्णत्ता, तंजा - लोइया लोउत्तरिया य, तत्थ लोइया णामा इमे, तंजहा - सावणे भद्दवए जाव आसाढे, लोउत्तरिया णामा इमे, तंजहा - अभिदिए पट्टे य, विजए पीइवद्धणे । सेयंसे य सिवे चेव, सिसिरे य सहेमवं ॥१॥ णवमे वसंतमासे, दसमे कुसुमसंभवे । एक्कारसे णिदाहे य, वणविरोहे य बारसे ॥ २ ॥ एगमेगस्स णं भंते! मासस्स कइ पक्खा पण्णत्ता ? गोयमा ! दो पक्खा पण्णत्ता, तंजहा- बहुलपक्खे य सुक्कपक्खे य । एगमेगस्स णं भंते! पक्खस्स कइ दिवसा पण्णत्ता ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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