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________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र जया णं भंते! सूरिए बाहिरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं महालए दिवसे महालिया राई भवइ ? ३६८ गोयमा! तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ चउहिं एगसट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणा दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ चउहिं एगसट्टिभागमुहुत्तेहिं अहिए इति, एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे सूरिए तयाणंतराओ मंडलाओ तयाणंतरं मंडलं संकममाणे संकममाणे दो दो एगसट्टिभागमुहुत्तेहिं एगमेगे मंडले रयणिखेत्तस्स णिवुड्ढेमाणे २ दिवसखेत्तस्स अभिवुढेमाणे २ सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइत्ति । जया णं सूरिए सव्वबाहिराओ मंडलाओ सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरड़ तया णं सव्वबाहिरं मंडलं पणिहाय एगेणं तेसीएणं राइंदियसएणं तिणि छावट्टे एगसट्ठिभागमुहुत्तसए रयणिखेत्तस्स णिवुट्टेत्ता दिवसखेत्तस्स अभिवुट्टेत्ता चारं चरइ, एस णं दोच्चे छम्मासे, एस णं दुच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे, एस णं इच्चे संवच्छरे, एस णं आइच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे पण्णत्ते ८ । शब्दार्थ - उत्तमकट्टपत्ते - अधिक से अधिक, राई - रात्रि । भावार्थ - हे भगवन्! जब सूर्य सर्वाभ्यंतर मंडल का उपसंक्रमण कर गति करता है उस समय दिन-रात कितने बड़े होते हैं ? हे गौतम! तब दिन अधिक से अधिक १० मुहूर्त का तथा रात्रि कम से कम १२ मुहूर्त की होती है । वहाँ से निष्क्रमण करता हुआ सूर्य नव संवत्सर में, प्रथम अहोरात्र में, द्वितीय आभ्यंतर मंडल का उपसंक्रमण कर गति करता है । हे भगवन्! जब सूर्य द्वितीय आभ्यंतर मंडल का उपसंक्रमण कर गति करता है तब दिवस एवं रात्रि कितने बड़े होते हैं? हे गौतम! तब दिन १८ मुहूर्त से मुहूर्तांश अधिक होती है। हे भगवन्! वहाँ से निष्क्रमण करता हुआ सूर्य द्वितीय अहोरात्र में दूसरे आभ्यंतर मंडल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तब दिन एवं रात्रि कितने बड़े होते हैं? Jain Education International २ ६१ २ मुहूर्तांश कम होता है तथा रात्रि १२ मुहूर्त से ६१ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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