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________________ सत्तमो वक्वारों सप्तम् वक्षस्कार चन्द्र आदि की संख्याएँ (१५६) जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे कइ चंदा पभासिंसु पभासंति पभासिस्संति कइ सूरिया तवसु तवेंति तविस्संति केवइया णक्खत्ता जोगं जोइंसु जोयंति जोइस्संति केवइया महग्गहा चारं चरिंसु चरंति चरिस्संति केवइयाओ तारागणकोडाकोडीओ सोभं सोभंति सोभिस्संति ? गोयमा ! दो चंदा पभासिंसु ३ दो सुरिया तवइंसु ३ छप्पण्णं णक्खत्ता जोगं जोइंसु ३ छावत्तरं महग्गहसयं चारं चरिंसु ३- एगं च सयसहस्सं तेत्तीसं खलु सहस्साइं । णव य सया पण्णासा तारागण - कोडिकोडीणं ॥ भवे भावार्थ - हे भगवन्! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत अतीतकाल में कितने चंद्र प्रभासित होते रहे हैं- उद्योत करते रहे हैं, वर्तमान में कितने उद्योत करते हैं और भविष्य में कितने उद्योत करेंगे? कितने सूर्य अतीत में तपते रहे हैं, वर्तमान में तपते हैं और भविष्य में तपते रहेंगे? कितने नक्षत्र अतीत, वर्तमान एवं भविष्य (क्रमशः) में योग करते रहे हैं, करते हैं और करते रहेंगे? कितने महाग्रह अतीत, वर्तमान एवं भविष्य (क्रमशः ) में गति करते रहे हैं गति करते हैं और गति करते रहेंगे? कितने कोटानुकोटि तारागण ( क्रमशः) अतीत, वर्तमान एवं भविष्य में शोभित होते रहे हैं, होते हैं और होते रहेंगे? - हे गौतम! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत दो चंद्रमा प्रभासित होते रहे हैं, होते हैं और होते रहेंगे । दो सूर्य तपते रहे हैं, तपते हैं और तपते रहेंगे। छप्पन नक्षत्र दूसरे नक्षत्रों के साथ योग करते रहे हैं, करते हैं और करते रहेंगे। एक सौ छियत्तर महाग्रह गतिशील होते रहे हैं, होते हैं और होते रहेंगे। गाथा हैं और होते रहेंगे। Jain Education International - एक लाख तैंतीस हजार नौ सौ पचास कोटानुकोटि तारे शोभित होते रहे हैं, होते For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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