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________________ पंचम वक्षस्कार अभिषेक की सम्पन्नता - सुणंतु भवंतो बहवे भवणवइ जाव जे णं देवाणुप्पिया !• तित्थयरस्स जाव फुट्टिहीतिकट्टु घोसणगं घोसेंति २ त्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणंति । तए णं ते बहवे भवणवइवाणमंतरजोइसवेमाणिया देवा भगवओ तित्थयरस्स जम्मणमहिमं करेंति २ त्ता जेणेव णंदीसरदीवे तेणेव उवागच्छंति २ ता अट्ठाहियाओ महामहिमाओ करेंति २ त्ता जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया । Jain Education International ॥ पंचमो वक्खारो समत्तो ॥ शब्दार्थ - खोमजुलयं दो रेशमी वस्त्र, उस्सीगमूले करेगा - लायेगा । = भावार्थ - तदनंतर देवेन्द्र, देवराज शक्र वैक्रिय लब्धि द्वारा पांच शक्रों की विकुर्वणा करता है। एक शक्र भगवान् तीर्थंकर को अपने करसंपुट द्वारा ग्रहीत करता है। दूसरा उनके पीछे छत्र धारण किए रहता है। दो शक्र दोनों पार्श्वों में चंवर डूलाते हैं। एक शक्र हाथ में वज्र धारण किए हुए आगे खड़ा होता है। - ३७३ तत्पश्चात् शक्र अपने चौरासी सहस्त्र सामानिक देवों यावत् अन्य भवनपति, वानव्यंतर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक देव-देवियों से घिरा हुआ, सर्वविधि विपुल वैभव एवं समृद्धि से . समायुक्त यावत् वाद्यों की तुमुल ध्वनि के बीच उत्कृष्ट, तीव्र गति द्वारा यावत् भगवान् तीर्थंकर के जन्म नगर में स्थित भवन में उनकी माता के पार्श्व में भगवान् को सुलाता है। वैसा कर भगवान् तीर्थंकर के प्रतिरूपक का, जो माता के पार्श्व में रखा था, प्रतिसंहरण करता है । तीर्थंकर की माता की अवस्वापिनी निद्रा का भी प्रतिसंहरण कर लेता है । तदनंतर भगवान् तीर्थंकर के सिरहाने दो रेशमी वस्त्र एवं दो कुंडल रख देता है। तपनीय जाति के उत्तम स्वर्ण से बने हुए लम्बे, स्वर्ण के पत्तों से निर्मित, नाना प्रकार की मणियों एवं रत्नों से निर्मित हारअठारह लड़े - बड़े हार, अर्द्धहार नौ लड़ों के छोटे हार - इनसे उपशोभित श्री दामकाण्ड भगवान् तीर्थंकर के ऊपर तनी हुई चांदनी में लटकाता है। भगवान् तीर्थंकर इसका निर्निमेष दृष्टि से अवलोकन करते हुए सुखपूर्वक क्रीड़ा करते हैं। - तदनंतर देवेन्द्र, देवराज शक्र वैश्रमण देव को आह्वान करता है एवं कहता है हे देवानुप्रिय ! शीघ्र ही बत्तीस कोटि रोप्य मुद्राएं, बत्तीस कोटि स्वर्ण मुद्राएं, बत्तीस कोटि रत्न एवं For Personal & Private Use Only - सिरहाने, पधारेइ धारण www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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