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________________ ३५२ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र सव्वतवणिजमए जाव पडिरूवे, तस्स णं मण्डवस्स बहुसमरमणिजस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभागंसि महं एगा मणिपेढिया० अट्ठ जोयणाई आयामविक्खम्भेणं चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं सव्वमणिमई वण्णओ, तीए उवरिं महं एगे सीहासणे वण्णओ, तस्सुवरिं महं एगे विजयदूसे सव्वरयणामए वण्णओ, तस्स मज्झदेसभाए एगे वइरामए अंकुसे, एत्थ णं महं एगे कुम्भिक्के मुत्तादामे, से णं अण्णेहिं तदधुच्चत्तप्पमाणमित्तेहिं चउहिं अद्धकुम्भिक्केहिं मुत्तादामेहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, ते णं दामा तवणिज-लंबूसगा सुवएणपयरगमण्डिया णाणामणिरयणविविहहारद्धहारउवसोभियसमुदया ईसिं अण्णमण्णमसंपत्ता पुव्वाइएहिं वाएहिं मंदं २ एइजमाणा जाव णिव्वुइकरेणं सद्देणं ते पएसे आपूरेमाणा २ जाव अईव २ उवसोभेमाणा २ चिट्ठति। तस्स णं सीहासणस्स अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरस्थिमेणं एत्थ णं सक्कस्स० चउरासीए सामाणियसाहस्सीणं चउरासीइभद्दासणसाहस्सीओ पुरथिमेणं अट्ठण्हं अग्गमहिसीणं एवं दाहिणपुरत्थिमेणं अभिंतरपरिसाए दुवालसण्हं देवसाहस्सीणं दाहिणेणं मज्झिमाए० चउदसण्हं देवसाहस्सीणं दाहिणपच्चत्थिमेणं बाहिरपरिसाए सोलसण्हं देवसाहस्सीणं पच्चत्थिमेणं सत्तण्हं अणियाहिवईणंति, तए णं तस्स सीहासणस्स चउद्दिसिं चउण्हं चउरासीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं एवमाई विभासियव्वं सूरियाभगमेणं जाव पच्चप्पिणंतित्ति। भावार्थ - देवेन्द्र, देवराज शक्र द्वारा इस प्रकार आदिष्ट किए जाने पर पालक देव अत्यन्त हर्षित परितुष्ट हुआ यावत् उसने वैक्रिय समुद्घात द्वारा यान - विमान की विकुर्वणा की। तीनों दिशाओं में त्रिसोपानमार्ग बनाकर उनके आगे तोरण द्वारों की रचना की। इनका वर्णन यावत् प्रतिरूप पर्यन्त पूर्ववत् योजनीय है। उस यान विमान के भीतर बड़ा ही सुंदर, समतल भू भाग था। वह ढोलक के उपरितन चर्मनद्ध की तरह यावत् चीते के चर्म के समान समतल और मुलायम था। अनेक कीलों और मेखों द्वारा वह आवर्त-प्रत्यावर्त, श्रेणी-प्रश्रेणी रूपों में प्रतिबद्ध था। स्वस्तिक, वर्द्धमान, पुष्यमानव, मत्स्याण्ड, मकरांडक, जार, मार-कामदेव, पुष्पावलि, कमल पत्र, सागर-तरंग, वासंतीलता तथा पद्मलता के चित्रों से अंकित, आभा - प्रभाभय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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