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________________ ३२८ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र ___ गोयमा! रुप्पी णाम वासहरपव्वए रुप्पी रुप्पपट्टे रुप्पोभासे सव्वरुप्पामए रुप्पी य इत्थ देवे.....पलिओवमट्ठिइए परिवसइ से एएणट्टेणं गोयमा! एवं वुच्चइ त्ति। भावार्थ - हे भगवन्! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत रुक्मी वर्षधर पर्वत किस स्थान पर कहा गया है? हे गौतम! रम्यक् वर्ष की उत्तर दिशा में, हैरण्यवत वर्ष की दक्षिण दिशा में, पूर्ववर्ती लवण समुद्र की पश्चिम दिशा में, पश्चिमवर्ती लवण समुद्र की पूर्व दिशा में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत रुक्मी संज्ञक वर्षधर पर्वत कहा गया है। पूर्व-पश्चिम लम्बा एवं उत्तर दक्षिण चौड़ा है। वह महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के तुल्य है। इतना अंतर है उसकी जीवा दक्षिण दिशा में है। उसका धनुपृष्ठ भाग उत्तर दिशा में है। अवशिष्ट समग्र वर्णन महाहिमवान् के सदृश है। वहाँ महापुण्डरीक संज्ञक द्रह है। उसके दक्षिणी तोरण से नरकांता संज्ञक नदी उद्गत होती है। वह रोहिता नदी के सदृश पूर्वी लवण समुद्र से मिल जाती है। नरकांता नदी का समस्त वर्णन रोहिता नदी के समान ज्ञातव्य है। रुप्यकूला नामक नदी महापुण्डरीक द्रह के उत्तरी तोरण से उद्गत होती है। वह हरिकांता नदी के समान पश्चिमवर्ती लवण समुद्र में मिल जाती है। अवशिष्ट सारा वर्णन पूर्वानुरूप है। हे भगवन्! रुक्मी वर्षधर पर्वत के कितने कूट अभिहित हुए हैं? हे गौतम! उसके आठ कूट कहे गये हैं - १. सिद्धायतन कूट २. रुक्मी कूट ३. रम्यक् कूट ४. नरकांता कूट ५. बुद्धि कूट ६. रुप्यकूला कूट ७. हैरण्यवत् कूट ८. मणिकांचन कूट। ये सभी कूट ५००-५०० योजन ऊँचे हैं। इनकी राजधानियाँ उत्तर दिशा में हैं। हे भगवन्! यह रुक्मी वर्षधर पर्वत इस नाम से किस कारण पुकारा जाता है? हे गौतम! रुक्मी वर्षधर पर्वत रजत निर्मित, रजत की तरह द्युतिमय एवं सम्पूर्णतः रजतमय है यावत् यहाँ पल्योपम आयुष्य युक्त रुक्मी संज्ञक देव निवास करता है। हे गौतम! इसी कारण यह इस नाम से पुकारा जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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