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________________ ३२० जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र है। वह संपूर्णतः स्वर्ण निर्मित एवं उद्योतमय है। पद्मवर वेदिका एवं वनखण्ड के चारों ओर से घिरी हुई है इत्यादि वर्णन पूर्ववत् योजनीय है। ... पंडुशिला के चारों ओर चार त्रिसोपानमार्ग (तीन-तीन सीढ़ियों के मार्ग) बने हैं यावत् तोरण पर्यन्त उनका सारा वर्णन पूर्वानुरूप है। उस पण्डुशिला पर अतिसमतल एवं रमणीय भूमिभाग बतलाया गया है यावत् उस पर देव-देवियाँ आश्रय लेते हैं। उस अतीव समतल एवं सुंदर भूमिभाग के बीचों-बीच, उत्तर-दक्षिण में दो सिंहासन बतलाए गए हैं। वे ५००-५०० धनुष लम्बे चौड़े एवं २५०-२५० योजन ऊँचे हैं। विजय संज्ञक वस्त्र के सिवाय सिंहासन विषयक समस्त वर्णन पूर्ववत् योजनीय है। ___ वहाँ जो उत्तर दिशावर्ती सिंहासन है वहाँ बहुत से भवनपति, वाणव्यंतर ज्योतिष्कं तथा वैमानिक देव देवियाँ कच्छ आदि विजयों में समुत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक करते हैं। वहाँ स्थित दक्षिण दिशावर्ती सिंहासन पर भी बहुत से भवनपति यावत् वैमानिक आदि देव-देवियाँ वत्स आदि विजयों में उत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक करते हैं। हे भगवन्! पण्डकवन में पण्डुकंबल शिला किस स्थान पर बतलाई गई है? हे गौतम! मंदर पर्वत की चूलिका के दक्षिण में, पंडक वन के दक्षिणी किनारे पर पण्डुकबल शिला कही गई है। वह पूर्व-पश्चिम लम्बी एवं उत्तर-दक्षिण चौड़ी है। उसका प्रमाण विस्तार पूर्ववत् योजनीय है। उसके अति समतल एवं सुंदर भूमिभाग के ठीक मध्य में एक विशाल सिंहासन आख्यात हुआ है उसका वर्णन पहले की ज्यों है। वहाँ बहुत से भवनपति यावत् वैमानिक देव-देवियाँ भरत क्षेत्रोत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक करते हैं। हे भगवन्! पंडकवन में रक्त शिला कहाँ बतलाई गई है? हे गौतम! मंदर पर्वत की चूलिका के पश्चिम में तथा पंडकवन के पश्चिमी किनारे पर रक्तशिला बतलाई गई है। वह उत्तर-दक्षिण लम्बी तथा पूर्व-पश्चिम चौड़ी है। उसका प्रमाणविस्तार-पूर्वानुसार-योजनीय है। वह सर्वथा तपनीय जाति के उच्च स्वर्ण से निर्मित है, स्वच्छ है। उसके उत्तर एवं दक्षिण में दो सिंहासन वर्णित हुए हैं। ____ इनमें जो दक्षिणी सिंहासन है वहाँ बहुत से भवनपति यावत् वैमानिक देव-देवियाँ द्वारा पक्ष्मादि विजयों में समुत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक किया जाता है। वहाँ जो उत्तर सिंहासन है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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