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________________ सस्कार - कच्छ-विजय २७६ गंगाकुण्डे णामं कुण्डे पण्णत्ते सहिँ जोयणाई आयामविक्खंभेणं तहेव जहा सिंधू जाव वणसंडेण य संपरिक्खित्ता। ___ से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-कच्छे विजए, कच्छे विजए? गोयमा! कच्छे विजए वेयड्डस्स पव्वयस्स दाहिणेणं सीयाए महाणईए उत्तरेणं गंगाए महाणईए पच्चत्थिमेणं सिंधूए महाणईए पुरत्थिमेणं दाहिणद्धकच्छविजयस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं खेमा णामं रायहाणी पण्णत्ता विणीयारायहाणीसरिसा भाणियव्वा, इत्थ णं खेमाए रायहाणीए कच्छे णामं राया समुप्पजइ, महयाहिमवंत जाव सव्वं भरहोअवणं भाणियव्वं णिक्खमणवजं सेसं भाणियव्वं जाव भुंजए माणुस्सए सुहे, कच्छ णामधेज्जे य कच्छे इत्थ देवे महिड्दिए जाव पलिओवमट्टिइए परिवसइ, से एएणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-कच्छे विजए कच्छे विजए जाव णिच्चे। ___ शब्दार्थ - कायव्वं - करना चाहिए, अवणं - अन्य सारा वर्णन। भावार्थ - हे भगवन्! जंबूद्वीप में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत कच्छ नामक विजय किस स्थान पर आख्यात हुआ है? हे गौतम! सीता महानदी के उत्तर में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में, माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में, जंबूद्वीप के अंतर्गत, महाविदेह क्षेत्र में कच्छ संज्ञक विजय * कहा गया है। वह लम्बाई में उत्तर-दक्षिण तथा चौड़ाई में पूर्व-पश्चिम में विस्तीर्ण है। पलंग की आकृति में स्थित है। गंगा महानदी एवं वैताढ्य पर्वत द्वारा वह छह भागों में बंटा हुआ है। यह १६५६२ - योजन लम्बा है। २२१३ योजन से कुछ कम चौड़ा है। कच्छ विजय के ठीक मध्य में वैताढ्य पर्वत आख्यात हुआ है, जो दक्षिणार्द्ध और उत्तरार्द्ध कच्छ को दो भागों में विभक्त करता है। हे भगवन्! जंबूद्वीप के अंतर्गत, महाविदेह क्षेत्र में दक्षिणार्द्ध कच्छ किस स्थान पर प्रतिपादित हुआ है? * चक्रवर्ती द्वारा विजित किए जाने योग्य स्थान। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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