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________________ २३२ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र तस्स बाहा पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं छजोयणसहस्साई सत्त य पणपण्णे जोयणसए तिण्णि य एगूणवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं, तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया दुहओ लवणसमुदं पुट्ठा पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठा पच्चत्थिमिल्लाए जाव पुट्ठा सत्ततीसं जोयणसहस्साइं छच्च चउवत्तरे जोयणसए सोलस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स किंचिविसेसूणे आयामेणं, तस्स धणुं दाहिणेणं अट्ठतीसं जोयणसहस्साइं सत्त. य चत्ताले जोयणसए दस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं। . हेमवयस्स णं भंते! वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते? .. गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, एवं तइयसमाणुभावो णेयव्वोत्ति। शब्दार्थ - पलियंक - पलंग, पडोयारे - प्रत्यवतार-प्राकट्य-अवस्थिति। भावार्थ - हे भगवन्! जंबूद्वीप में हैमवत नामक वर्ष-क्षेत्र कहाँ बतलाया गया है? हे गौतम! महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, चुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत के उत्तर में, पूर्वीदिग्वर्ती लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमवर्ती लवणसमुद्र के पूर्व में हैमवत नामक वर्ष-क्षेत्र बतलाया गया है। ___यह पूर्व पश्चिम में लम्बा तथा उत्तर दक्षिण में चौड़ा है। इसका आकार पलंग के सदृश हैं। यह दो तरफ से लवण समुद्र का संस्पर्श करता है। अपने पूर्वदिग्वर्ती किनारे में पूर्वी लवण समुद्र का एवं पश्चिमदिग्वर्ती किनारे से पश्चिमी लवण समुद्र का संस्पर्श करता है। यह २१०५ - योजन चौड़ा है। उसकी बाहा * की लम्बाई पूर्व से पश्चिम में ६७५५ - योजन है। उसकी जीवा० पूर्व में अपने पूर्वी किनारे से लवण समुद्र का तथा पश्चिम में पश्चिमी किनारे से पश्चिम लवण समुद्र का संस्पर्श करती है यावत् वह लम्बाई में ३७६७४१० योजन से कुछ कम है। दक्षिण में उसका धनुष्य पृष्ठ ० ३८७४०० योजन है। यह इसकी परिधि की अपेक्षा से है। *बाहा - दक्षिणोत्तरायत वक्र आकाश-प्रदेश पंक्ति। .जीवा - धनुष की प्रत्यंचा जैसी सीधी सर्वान्तिम प्रदेश पंक्ति। © धनुष्य पृष्ठ - दक्षिणार्द्ध भरत के जीवोपमित भाग का पीछे का हिस्सा। १६ स्ति । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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