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________________ तृतीय वक्षस्कार - राजतिलक २०३ दाहिणिल्लेणं तिसोवाण-पडिरूवएणं पच्चोरुहंति, तए णं तस्स भरहस्स रण्णो आभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरूढस्स समाणस्स इमे अट्ठट्ठमंगलगा पुरओ जाव संपट्ठिया, जोऽविय अइगच्छमाणस्स गमो पढमो कुबेरावसाणो सो चेव इहंपि कमो सक्कारजढो णेयव्वो जाव कुबेरोव्व देवराया केलासं सिहरिसिंगभूयंति। तए णं से भरहे राया मजणघरं अणुपविसइ २ ता जाव भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ २ त्ता भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ २ त्ता उप्पिंपासायवरगए फुटमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं जाव भुंजमाणे विहरइ। तए णं से भरहे राया दुवालससंवच्छरियंसि पमोयंसि णिव्वत्तंसि समाणंसि जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ २ ता जाव मजणघराओ पडिणिक्खमइ २ त्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जाव सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीयइ २ त्ता सोलस देवसहस्से सक्कारेइ सम्माणेइ स० २ ता पडिविसजेइ २ त्ता बत्तीसं रायवरसहस्सा सक्कारेइ सम्माणेइ स० २ ता० सेणावइरयणं सक्कारेइ सम्माणेइ स० २ त्ता जाव पुरोहियरयणं सक्कारेइ सम्माणेइ स० २ त्ता० एवं तिण्णि सट्टे सूयारसए अट्ठारससेणिप्पसेणीओ सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता अण्णे. य बहवे राईसरतलवर जाव सत्थवाहप्पभिइओ सक्कारेइ सम्माणेइ स०२त्ता पडिविसज्जेइ २त्ता उप्पिं पासायवरगए जाव विहरइ। शब्दार्थ - वियरय - तैयारी करो, परियादियंति - ग्रहण किया, सोवाण - सोपान, उत्तरपोट्ठवया - उत्तरभाद्रपदा, साभाविएहि - स्वाभाविक, पविसतस्य - प्रवेश करते समय, भणिया - कहा, पिणखेंति - पहनाया। भावार्थ - राजा भरत राज्य का उत्तरदायित्व संभाले हुए था, तब किसी एक दिन उसके मन में ऐसा विचार यावत् संकल्प उत्पन्न हुआ - मैंने अपनी शक्ति, शौर्य, पौरुष, पराक्रम को विजित किया है। इसलिए यह समुचित है कि मेरा महान् राज्याभिषेक समारोह किया जाए, जिसमें मेरा राजतिलक हो। दूसरे दिन प्रातःकाल रात्रि व्यतीत हो जाने पर यावत् सूर्य की किरणों के उद्दीप्त हो जाने पर राजा स्नानगृह में गया यावत् स्नान कर वहाँ से प्रतिनिष्क्रांत होकर बाह्य सभा में पूर्वाभिमुख होकर सिंहासनासीन हुआ। तदनंतर राजा ने सोलह हजार देवों, बत्तीस हजार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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