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________________ तृतीय वक्षस्कार - राजधानी की सुसज्जा ११६ **-10-08-*--10-0-0-10-19-19-19-19-19-10-08-10-10-10-24-10-19-06-04-10-0-0-11-0-0--0-0-0-0-00-10-19-08--12--- भरत के यहाँ से प्रस्थान किया। विनीता राजधानी को यावत् राजा के आदेशानुरूप सुसज्जित करके करवाके राजा को सूचित किया - उनकी आज्ञानुसार सब कार्य हो गया है। (५५) तए णं से भरहे राया जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ २ ता मजणघरं अणुपविसइ २ ता समुत्तजालाकुलाभिरामे विचित्तमणिरयणकुट्टिमतले रमणिज्ने ण्हाणमंडवंसि णाणामणिरयणभत्तिचित्तंसि पहाणपीढंसि सुहणिसण्णे सुहोदएहिं गंधोदएहिं पुप्फोदएहिं सुद्धोदएहि य पुण्णे कल्लाणगपवरमजणविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणगपवरमजणावसाणे पम्हलसुकुमालगंधकासाइयलूहियंगे सरससुरहिगोसीसचंदणाणुलित्तगत्ते अहयसुमहग्घदूसरयणसुसवूडे सुइमालावण्णगविलेवणे आविद्धमणिसुवण्णे कप्पियहारद्धहारतिसरिया पालंबपलंबमाणकडिसुत्तसुकयसोहे पिणद्धगेविजगअंगुलिजगललियगयललियकयाभरणे णाणामणिकडगतुडियथंभियभूए अहियसस्सिरीए कुंडलउज्जोइयाणणे मउडदित्तसिरए हारोत्थयसुकयरइयवच्छे पालंबपलंबमाणसुकयपडउत्तरिजे मुद्दियापिंगलंगुलीए णाणामणिकणगविमलमहरिहणिउणोयवियमिसिमिसिंत-विरइयसुसिलिट्ठविसिट्ठलट्ठसंठियपसत्थआविद्धवीरबलए, किं बहुणा?, कप्परुक्खए चेव अलंकियविभूसिए परिंदे सकोरंट जाव चउचामरवालवीइयंगे मंगलजयजयसद्दकयालोए अणेगगणणायगदंडणायग जाव दूयसंधिवालसद्धिं संपरिवुडे धवलमहामेहणिग्गए इव जाव ससिव्व पियदंसणे णरवई धूवपुप्फगंध-मल्लहत्थगए मजणघराओ पडिणिक्खमइ २ ता जेणेव आउहघरसाला जेणेव चक्करयणे तेणामेव पहारेत्थ गमणाए। शब्दार्थ - पम्हल - रोंएदार, सुकुमाल - कोमल, कासाइय - कसैली त्रिफलादि वनौषधियों से रंजित अथवा लाल या गेरुएं रंग का वस्त्र, कडिसुत्त - कटिसूत्र, गेविज - गले में, पिणद्ध - धारण किए, णिउण - निपुण, मिसिमिसिंत - चमकते हुए, ससिव्व - चंद्रमा के समान। For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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