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________________ १०६ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र - - - - - - - - - - - - - - - -- - - - भावी उत्सर्पिणी के दुःषम-दुःषमा एवं दुःषमा आरक (४७) तीसे णं समाए इक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले वीइक्कंते आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सावणबहुलपडिवए बालवकरणंसि अभीइणक्खत्ते चोइसपढमसमए अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं जाव अणंतगुणपरिवुडीए परिवुढेमाणे २ एत्थ णं दूसमदूसमा णामं समाकाले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो! तीसे णं भंते! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे भविस्सइ? गोयमा! काले भविस्सइ हाहाभूए भंभाभूए एवं सो चेव दूसमदूसमा वेढओ णेयव्वो, तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले वीइक्कंते अणंतेहिं वण्णपजवेहिं जाव अणंतगुणपरिवुडीए परिवुड्डेमाणे २ एत्थ णं दूसमा णामं समाकाले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो!। भावार्थ - हे आयुष्मन् श्रमण गौतम! उस काल के - अवसर्पिणी काल के छठे आरक के इक्कीस हजार वर्ष बीत जाने पर आने वाले उत्सर्पिणी काल के, श्रावण मास, कृष्णपक्ष प्रतिपदा के दिन, बालव नामक करण में, चन्द्र के साथ अभिजित नक्षत्र का योग होने पर, चतुर्दशविध काल के प्रथम समय में दुःषम-दुःषमा आरक शुरू होगा। उसमें अनंतवर्ण पर्याय ' यावत् अनंत गुण पर्याय क्रमशः परिवृद्धित होते जायेंगे। हे भगवन्! उस काल में भरतक्षेत्र का आकार-प्रकार किस तरह का होगा? हे आयुष्मन् श्रमण गौतम! उस समय हाहाकार एवं चीत्कार पूर्ण वैसी ही स्थिति होगी, जैसी अवसर्पिणी काल के छठे आरक के संदर्भ में वर्णित हुई है। उस उत्सर्पिणी काल के प्रथम आरक दुःषम-दुःषमा के इक्कीस सहस्र वर्ष व्यतीत हो जाने पर दुःषमा नामक दूसरा आरक शुरू होगा। उसमें अनन्त वर्ण पर्याय यावत् परिवृद्धिक्रम से उत्तरोत्तर वर्द्धनशील होंगे। विवेचन - चतुर्दशविध काल के अन्तर्गत - ___ १. निःश्वास-उच्छ्वास २. प्राण ३. स्तोक ४. लव ५. मुहूर्त ६. अहोरात्र ७. पक्ष ८. मास ६. ऋतु १०. अयन ११. संवत्सर १२. युग १३. करण १४. नक्षत्र - ये माने गए हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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