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________________ ******* ***** ***** ******************************** ************* * हूँ और भगवान् के दर्शन करने जा रहा हूँ। इस पर अर्जुन माली ने कहा - मैं भी आप के साथ प्रभु के दर्शन करने चलना चाहता हूँ। सुदर्शन श्रमणोपासक ने कहा - हे देवानुप्रिय! जैसा तुम्हें सुख हो, वैसा करो। सुदर्शन श्रमणोपासक अर्जुनमाली के साथ भगवान के दर्शन करने गया। भगवान् ने उन दोनों को धर्मकथा कही। धर्मकथा सुनकर सुदर्शन श्रमणोपासक घर लौट आया। किन्तु अर्जुनमाली को वैराग्य उत्पन्न हुआ और उसने भगवान् के पास दीक्षा अंगीकार कर ली। . दीक्षा अंगीकार कर बेले-बेले पारणा करता हुआ तप से अपनी आत्मा को भावित करता हुआ विचरने लगा। राजगृह नगर में गोचरी के लिए घूमते हुए, अर्जुन अनगार को देखा तो लोग कहने लगे इसने मेरे पिता को मारा, इसने मेरे पुत्र को मारा, इसने मेरी पत्नी, पुत्रवधु, बहन, भाई आदि को मारा। इस प्रकार कहते हुए कटु वचनों से उनकी निंदा, हीलना, तिरस्कार करने लगे, कई उन्हें थप्पड़, लाठी, पत्थर, ईंट आदि से मारने लगे। किन्तु अर्जुन अनगार क्षमा भाव से उन्हें सहन करते हुए विचरने लगे। अर्जुन अनगार को सामुदानिक भिक्षा में कभी आहार मिलता, तो पानी नहीं मिलता, कभी पानी मिलता तो आहार नहीं मिलता था। इन सभी को निर्जरा का हेतु समझ कर वे विचरने लगे। इस प्रकार उत्कृष्ट क्षमा भाव के कारण मात्र छह माह संयम का पालन कर अर्द्ध मास की संलेखना संथारा करके सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए। अतिमुक्तककुमार - पोलासपुर नाम का नगर था। वहाँ श्रीवन नामक उद्यान था। वहाँ विजय नाम का राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम श्रीदेवी था। उस विजय राजा और श्रीदेवी रानी का आत्मज अतिमुक्तक नाम का राजकुमार था जो अत्यन्त सुकुमार था। एक दिन अतिमुक्तककुमार अपने बहुत से बाल मित्रों के साथ इन्द्रस्थान (खेल मैदान) में खेल खेल रहा था। उसी दौरान भगवान् महावीर के अन्तेवासी शिष्य इन्द्रभूति अनगार (गौतम स्वामी) भिक्षा हेतु उधर से निकले। उन्हें देखकर बालक अतिमुक्तक उनके पास आकर इस प्रकार बोला - हे भगवन्! आप कौन हैं और क्यों घूम रहे हैं? गौतम स्वामी ने कहा - हम निर्ग्रन्थ अनगार हैं और भिक्षा के लिए घूम रहा हूँ। इस पर कुमार ने कहा - भगवन्! मैं आपको भिक्षा दिलाता हूँ। ऐसा कहकर कुमार ने गौतम स्वामी की अंगुली पकड़ ली और अपने घर ले गया। श्रीदेवी रानी उन्हें देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुई, उन्हें तीन बार विधि सहित वंदन नमस्कार किया। रसोई घर में ले गई और आदर सहित आहार, पानी बहरा कर उन्हें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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