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________________ ३२ दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - चतुर्थ दशा ___ संग्रहपरिज्ञा में उन गुणों का निर्देश है, जिनका गण या साधु-साध्वी संघ के अधिनायक (आचार्य) में होना आवश्यक है। आचार्य के निर्देशन में अनेक साधु-साध्वी होते हैं। अत एव आचार्य केवल अपनी व्यक्तिगत चिंता नहीं करते वरन् समस्त गण की चिन्ता करते हैं, मर्यादोचित आनुकूल्य का ध्यान रखते हैं। साधु-साध्वियों के जीवन में वर्षावास का बहुत महत्त्व है क्योंकि जब निरन्तर, चार मास तक किसी एक ही स्थान पर उन्हें प्रवास करना होता है। एक दो दिन तो व्यक्ति सुविधा-असुविधा में निकाल सकता है, किन्तु जहाँ चार महीने रहना हो, वहाँ शास्त्रमर्यादानुरूप सभी अनुकूलताएँ वांछित हैं, जिनसे उनकी साधना दृढ़ होती हो। अत एव आवास स्थान, दैनंदिन प्रयोग में आने वाली पीठ फलक, आसन-शय्यासंस्तारक आदि उनके लिए समीचीन रूप में उपलब्ध हों। आचार्य वैसे क्षेत्र का, स्थान का चयन करते हैं। वे कालोचित करणीयताओं का यथासमय पालन करवाते हैं। ज्ञानवृद्ध, दीक्षावृद्ध साधुओं के सम्मान का पूरा ध्यान रखते हैं। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि जैन शासन में आचार्य का मतों के आधार पर निर्वाचन नहीं । होता, आचार्य ही अपने उत्तराधिकारी आचार्य का पदस्थापन करते हैं। इन विशेषताओं से युक्त आचार्य ही अपने समकक्ष उत्तराधिकारी का चयन कर सकते हैं। शिष्य के प्रति आचार्य का दायित्व आयरिओ अंतेवासी इमाए चउव्विहाए विणयपडिवत्तीए विणइत्ता भवइ णिरणत्तं गच्छइ। तंजहा-आयारविणएणं, सुयविणएणं, विक्खेवणाविणएणं, दोसणिग्घायणविणएणं॥९॥ से किंतं आयारविणए? आयारविणएं चउबिहे पण्णत्ते। तंजहा - संजमसा(स)मायारी यावि भवइ, तवसामायारी यावि भवइ, गणसामायारी यावि भवइ, एगल्लविहारसामायारी यावि भवइ। से तं आयारविणए॥१०॥ से किं तं सुयविणए? सुयविणए चउव्विहे पण्णत्ते। तंजहा - सुत्तं वाएइ, अत्यं वाएइ, हियं वाएइ, णिस्सेसं वाएइ। से तं सुयविणए॥११॥ से किं तं विक्खेवणाविणए? विक्खेवणाविणए चउविहे पण्णत्ते। तंजहाअदिट्ठधम्मं दिट्टपुव्वगत्ताए विणएइत्ता भवइ, दिट्ठपुव्वगं साहम्मियत्ताए विणएइत्ता भवइ, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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