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________________ व्यवहार सूत्र - दशम उद्देशक २०४ ************★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★xx बीस वर्ष के दीक्षा-पर्याय से युक्त श्रमण-निर्ग्रन्थ को, जो सर्वश्रुतानुपाती कहा गया है, उसका अभिप्राय यह है कि वह समग्र श्रुत का अध्येता होता है। तीन वर्ष की दीक्षा-पर्याय वाले को उपाध्याय, पाँच वर्ष की दीक्षा-पर्याय वाले को आचार्य उपाध्याय और आठ वर्ष की दीक्षा-पर्याय वाले को सब पदवियाँ देना बताया है। आचारांग निशीथ का ज्ञान किये बिना उपाध्याय की, दो अंग चार छेद के बिना आचार्य की और चार अंग और चार छेद के बिना शेष पदवियाँ नहीं दी जाती है। यदि तीन वर्षों तक आचार प्रकल्प आदि पढ़ाये ही नहीं जाते तो आगमकार तीन वर्षों में पद देने का विधान कैसे करते? अतः इस पाठ की तथा १०वें उद्देशक के पाठ 'तिवासपरियायस्स समणस्स णिग्गंथस्स कप्पड़ आयारपकप्पे णाम अज्झयणे उद्दिसित्तए।' इन दोनों पाठों की संगति - 'साधारण क्षयोपशम वाले को भी ३ वर्ष आदि में आचार प्रकल्पादि का अध्ययन कर ही लेना चाहिए।' इस प्रकार अर्थ करने में संगति बैठ जाती है। विशेष क्षयोपशम वाले धन्ना अनगार (अणुत्तरोववाई वर्णित) आदि अनेक साधकों ने तो नव महीने आदि की दीक्षा पर्याय में ही ११ अंगों का अध्ययन कर लिया था, इत्यादि अनेक प्रमाण मिलते हैं। अतः व्यवहार सूत्र उद्देशक में १० के उल्लेख को एकांत नियम रूप नहीं समझना चाहिए। दशविध वैयावृत्य : महानिर्जरा 'दसविहे वेयावच्चे पण्णत्ते, तंजहा-आयरियवेयावच्चे उवज्झायवेयावच्चे थेरवेयावच्चे तवस्सिवेयावच्चे सेहवेयावच्चे गिलाणवेयावच्चे साहम्मियवेयावच्चे कुलवेयावच्चे गणवेयावच्चे संघवेयावच्चे॥३०४॥ . आयरियवेयावच्चं करेमाणे समणे णिग्गंथे महाणिज्जरे. महापज्जवसाणे भवइ ॥३०५॥ उवज्झायवेयावच्चं करेमाणे समणे णिग्गंथे महाणिजरे महापजवसाणे. भवइ॥३०६॥ थेरेवेयावच्चं करेमाणे समणे णिग्गंथे महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ॥३०७॥ तवस्सिवेयावच्चं करेमाणे समणे णिग्गंथे महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ॥३०८॥ सेहवेयावच्चं करेमाणे समणे णिग्गंथे महाणिजरे महापज्जवसाणे भवइ॥३०९॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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