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________________ १८३ यवमध्य एवं वज्रमध्य चंद्रप्रतिमाएँ Rawatixxxkritikakkarutakkarutakkakakakakakkkkkkkkkkkkkkkkkkk त्रयोदशी के दिन आहार तथा पानी की तीन-तीन दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। चतुर्दशी के दिन आहार तथा पानी की दो-दो दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। अमावस्या के दिन आहार तथा पानी की एक-एक दत्ति ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। शुक्लपक्ष की प्रतिपदा के दिन आहार एवं पानी की दो-दो दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। '' द्वितीया के दिन आहार एवं पानी की तीन-तीन दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करें। तृतीया के दिन आहार एवं पानी की चार-चार दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। चतुर्थी के दिन आहार एवं पानी की पाँच-पाँच दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। __पंचमी के दिन आहार एवं पानी की छह-छह दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण करे। ___षष्ठी के दिन आहार एवं पानी की सात-सात दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। सप्तमी के दिन आहार एवं पानी की आठ-आठ दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। अष्टमी के दिन आहार एवं पानी की नौ-नौ दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। नवमी के दिन आहार एवं पानी की दस-दस दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने पर वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। दशमी के दिन आहार एवं पानी की ग्यारह-ग्यारह दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है यावत् पूर्वोक्त स्थितियाँ होने वह आहार-पानी ग्रहण करे अन्यथा ग्रहण न करे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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