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________________ '७३ स्वामी रहित आवास में आज्ञा का विधान ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ बाद बिना आज्ञा से उतरना अटपटा सा लगता है। धारणानुसार अर्थ करने में कोई अनुचित नहीं लगता है। तात्पर्य यह है कि पूर्वगृहीत आज्ञानुसार उस स्थान तथा तद्वर्ती अचित्त उपकरणों का साधु-साध्वी 'यथालन्दकाल' तक उपयोग कर सकते हैं। 'यथालन्दकाल' का तात्पर्य चातुर्मास में चार महीनों से तथा अन्य स्थितियों में शास्त्रमर्यादानुसार है। ___यदि आश्रयदाता ने साधु संख्या एवं आवास के सीमांकन के साथ आज्ञा दी हो और तदनन्तर साधु अधिक आ जाए एवं स्थान भी अधिक वांछनीय हो तो पुनः आज्ञा लेना कल्पता है। इसके अलावा यदि पूर्व साधुओं ने श्रमणोपासक को मकान संभला दिया हो और उसके पश्चात् यदि निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थिनी आएं तो उन्हें पुनः आज्ञा लेना कल्पता है। उपाश्रयवर्ती अवग्रहों (पदार्थों) के उपयोग में भी सूत्रकार ने केवल अचित्त उपकरणों या वस्तुओं (शिला लोढ़ी, खरल आदि) के उपभोग को ही कल्पनीय कहा है। स्वामी रहित आवास में आज्ञा का विधान से वत्थुसु अव्वावडेसु अव्वोगडेसु अपरपरिग्गहिएसु अमरपरिग्गहिएसु सच्चेव उग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठइ अहालंदमवि उग्गहे॥२७॥ से वत्थुसु वावडेसु वोगडेसु परपरिग्गहिएसु भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चं पि उग्गहे अणुण्णवेयव्वे सिया अहालंदमवि उग्गहे॥२८॥ भावार्थ - २७. अव्यापृत, अव्याकृत, अपरपरिगृहीत तथा अमरपरिगृहीत आवास में भी पूर्व अनुज्ञापित साधुओं के स्थान पर(पूर्वानुसार)यथालन्दकाल - कल्पनीय काल मर्यादा तक अन्य साधुओं द्वारा प्रवास किया जा सकता है। २८. यदि वही (पूर्वोक्त) आवास व्याप्त, व्याकृत और अन्यों द्वारा परिगृहीत हो गया हो तो भिक्षु भाव - संयम मर्यादा के लिए जितने समय रहना कल्पनीय हो, उतने समय के लिए पुनः अनुज्ञा लेनी चाहिए। : विवेचन - उपरोक्त सूत्र में आए विशिष्ट शब्दों का निर्वचन(अर्थ - आशय)निम्नांकित रूप में ज्ञातव्य हैं - १. अत्यापूत - निवास एवं व्यापारादि कार्यों में निषप्रयोज्य जीर्ण-शीर्ण मकान। . . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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