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________________ ४६ आवश्यक सत्र - ततीय अध्ययन wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwa अर्थात् - वंदना करने से जीव नीच गोत्र कर्म का क्षय करता है, उच्च गोत्र का बंध करता है। सुभग, सुस्वर आदि सौभाग्य की प्राप्ति होती है सभी उसकी आज्ञा स्वीकार करते हैं और वह दाक्षिण्यभाव-कुशलता एवं सर्वप्रियता को प्राप्त करता है। ___ जो व्यक्ति अपने इष्ट देव - तीर्थंकर भगवंतों की स्तुति करता है, गुण स्मरण करता है, वही तीर्थंकर भगवान् के बताए हुए मार्ग पर चलने वाले, जिनवाणी का उपदेश देने वाले गुरुओं को यथाविधि भक्तिभाव पूर्वक वंदन-नमस्कार कर सकता है अत एव चतुर्विंशतिस्तव के बाद वंदना अध्ययन को स्थान दिया गया है। द्वादशावर्त गुरु-वंदन सूत्र (इच्छामि खमासमणो का पाठ) इच्छामि खमासमणो! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए ! अणुजाणह मे मिउग्गहं निसीही, अहो-कायं कायसंफासं खमणिज्जो भे! किलामो, अप्पकिलंताणं बहुसुभेणं भे दिवसो वइक्कंतो?0 जत्ता भे? जवणिज्जं च भे? खामेमि खमासमणो ! देवसियं वइक्कम ® आवस्सियाए पडिक्कमामि खमासमणाणं देवसियाए आसायणाएक तित्तीसन्नयराए जं किंचि मिच्छाए मणदुक्कडाए वयदुक्कडाए कायदुक्कडाए, कोहाए, माणाए, मायाए, लोहाए, सव्वकालियाए, सव्वमिच्छोवयाराए, सव्वधम्माइक्कमणाए, आसायणाए, जो ० "दिवसो वइक्कतो" के स्थान पर रात्रिक प्रतिक्रमण में "राइ वइक्कता", पाक्षिक प्रतिक्रमण में "दिवसो पक्खो वइक्कतो", चौमासी प्रतिक्रमण में "चउम्मासो वइक्कतो" एवं सांवत्सरिक प्रतिक्रमण .. में "संवच्छरो वइक्कतो" पाठ बोलना चाहिए । .. ! "देवसियं वइक्कर्म" के स्थान पर रात्रिक प्रतिक्रमण में "राइयं वइक्कम", पाक्षिक प्रतिक्रमण में "देवसिय पक्खियं वइक्कम", चौमासी प्रतिक्रमण में "चउम्मासियं वइक्कम" और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में "संवच्छरियं वइक्कम" - ऐसा पाठ बोलना चाहिये। . "देवसियाए आसायणाए" के स्थान पर रात्रिक प्रतिक्रमण में "राइयाए आसायणाए", पाक्षिक प्रतिक्रमण में "देवसियाए पक्खियाए आसायणाए", चौमासी प्रतिक्रमण में "चउम्मासियाए आसायणाए" और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में "संवच्छरियाए आसायणाए" पाठ बोलना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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