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________________ ३८ आवश्यक सूत्र - प्रथम अध्ययन ************** निषेध नहीं है - इसलिए करना चाहिए। (आवश्यक सूत्र के अलावा सूत्रागम की स्वाध्याय नहीं करना चाहिये) । १४. सज्झाइए ण सज्झाइयं ( स्वाध्याये न स्वाध्यायितं ) स्वाध्याय काल में स्वाध्याय न करना दोष है। Jain Education International शंका - 'स्वाध्याय करूंगा' इत्यादि व्रत प्रत्याख्यान लिए बिना काल में स्वाध्याय न किया हो, स्वाध्याय में स्वाध्याय न किया हो आदि अतिचार लगते ही नहीं तब उनका प्रतिक्रमण क्यों किया जाए ? समाधान - प्रतिक्रमण केवल अतिचार शुद्धि के लिए नहीं वरन् अतिचारों के ज्ञान, उनके संबंध में शुद्ध श्रद्धा, उन्हें टालने की भावना आदि के लिए किया जाता है जैसे- 'मैं चोरी नहीं करूंगा' - इस व्रत को लेने पर जैसे चोरी करने से पाप लगता है वैसे ही चोरी का व्रत न लेने वाले को चोरी करने पर पाप लगता ही है- भले ही वह व्रत के अतिचार रूप में न लगे, वह पाप से मुक्त नहीं रहता । अतः व्रतधारी और अव्रती दोनों को चोरी के पाप का प्रतिक्रमण आवश्यक है, वैसे ही स्वाध्याय आदि का नियम न लेने वाले को भी काल स्वाध्याय आदि न करने का प्रतिक्रमण करना ही चाहिये क्योंकि उसे भी काल - स्वाध्याय न करने आदि का पाप लगता ही है। ॥ सामायिक नामक प्रथम अध्ययन समाप्त ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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