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________________ २४६ आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट द्वितीय RRRRRRRRRR.. ६. दिन में धर का दरवाजा खुला रखने की प्रवृत्ति रखनी चाहिये। ७. साधु मुनिराज घर में पधारें तो सूझता होने पर तथा मुनिराज के अवसर होने पर स्वयं के हाथ से दान देने की उत्कृष्ट भावना रखनी चाहिये। ८. साधुजी की गोचरी के विधि-विधान की जानकारी, उनकी संगति, चर्चा, शास्त्र स्वाध्याय से निरंतर बढ़ाते रहना चाहिये। ___९. साधु मुनिराज गवेषणा करने के लिए कुछ भी पूछताछ करें तो झूठ नहीं बोलना चाहिये और उनकी गवेषणा से नाराज भी नहीं होना चाहिये । ____ शंका - क्या सामायिक, पौषध वाला साधु साध्वी को आहार पानी आदि बहरा ... सकता है? समाधान - सामायिक पौषध वाला खुले श्रावक से आहारादि वस्तु की याचना करके स्वयं के घर से या दूसरों के घर से साधुओं को बहरा सकता है । स्वयं के पास रहा हुआ उपकरण प्रमार्जनी, वस्त्र, पुस्तक आदि बिना किसी की आज्ञा से भी प्रतिलाभित कर सकता है। बड़ी संलेखना का पाठ . अह भंते! अपच्छिम-मारणंतिय संलेहणा झूसणा आराहणा पौषध शाला पूंज कर उच्चारपासवण भूमिका पडिलेह कर गमणागमणे पडिक्कम कर, दर्भादिक संथारा संथार कर, दर्भादिक संथारा दुरूह कर, पूर्व या उत्तर दिशा सम्मुख पल्यंकादि आसन से बैठ कर करयल-संपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट एवं वयासी "णमोत्थुणं अरहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं" ऐसे अनंत सिद्ध भगवान् को नमस्कार कर के "णमोत्थुणं अरहंताणं भगवंताणं जाव संपाविउकामाणं" जयवंते वर्तमान काले महाविदेह क्षेत्र में विचरते हुए तीर्थंकर भगवान् को नमस्कार कर के अपने धर्माचार्यजी को नमस्कार करता हूँ। साधु प्रमुख चारों तीर्थ को खमा के, सर्व जीव-राशि को खमा के, पहले जो व्रत आदरे हैं, उनमें जो अतिचार दोष लगे हों, वे सर्व आलोच के पडिक्कम कर के, निन्द के, निःशल्य हो कर के, सव्वं पागाइवायं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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