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________________ २१२ ___ आवश्यक सूत्र – परिशिष्ट द्वितीय भावार्थ - मैं कायोत्सर्ग करने की इच्छा करता हूँ। मैंने दिवस संबंधी जो अतिचार किया हो। काया संबंधी - अविनय आदि हआ हो। वचन संबंधी-अशुभ वचन, असत्य, अपशब्द आदि बोला हो। मन संबंधी - अशुभ मन प्रर्वर्ताया हो, सूत्र से विरुद्ध प्ररूपणा की हो, जैन मार्ग का त्याग कर-गलत मार्ग-अन्य मार्ग ग्रहण किया हो, अकल्पनीय कार्य किया हो, नहीं करने योग्य कार्य किया हो, आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान ध्याया हो, अशुभ दुष्ट चिंतन किया हो, आचरण नहीं करने योग्य कार्य का आचरण किया हो, अनिच्छनीय - इच्छा नहीं करने योग्य कार्य की इच्छा की हो, श्रावक धर्म के विरुद्ध कार्य किया हो, ज्ञान, दर्शन और चरित्ताचरित्त के विषय में, श्रुत और समभाव रूप सामायिक के विषय में, तीन गुप्ति के विषय में अतिचार का सेवन किया हो, चार कषाय का उदय हुआ हो। पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षा व्रत रूप बारह प्रकार के श्रावक धर्म की खंडना की हो, विराधना की हो, तो उसका पाप मेरे लिए मिथ्या हो। विवेचन - प्रतिक्रमण का सार पाठ "इच्छामि ठामि" का पाठ है। इसमें ज्ञान, दर्शन, चारित्र की शुद्धि के लिए तीन गुप्ति, चार कषाय त्याग, पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, चार शिक्षा व्रत रूप श्रावक धर्म में लगे हुए अतिचारों का मिच्छामि दुक्कडं दिया गया है एवं आवश्यक पाठों का सार होने से इसे प्रतिक्रमण का सार पाठ कहा है। ____ अतिचार के मुख्य तीन प्रकार हैं - १. कायिक २. वाचिक ३. मानसिक। पाठ में दिये गये अतिचारों में से उस्सुत्तो और उम्मग्गो वचन सम्बन्धी, अकप्पो और अकरणिजो काया सम्बन्धी और आगे के अतिचार प्रायः मन सम्बन्धी हैं। श्रावक के बारह व्रत हैं - पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षा व्रत। जिनका संक्षिप्त स्वरूप इस प्रकार है - ___ अणुव्रत - महाव्रतों की अपेक्षा छोटे व्रतों को अणुव्रत कहते हैं। महाव्रतों में हिंसादि पापों का सम्पूर्ण त्याग होता है और अणुव्रतों में मर्यादित त्याग होता है । अणुव्रत पांच हैं - १. स्थूल (मोटी) हिंसा का त्याग २. स्थूल झूठ का त्याग ३. स्थूल .. चोरी का त्याग ४. स्वस्त्री सन्तोष और पर स्त्री सेवन का त्याग ५. इच्छा परिमाण अर्थात् परिग्रह का परिमाण करना। गुणवत - जो अणुव्रतों को गुण अर्थात लाभ पहुंचाते हैं, उन्हें गुण व्रत कहते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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