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________________ १६२ आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट प्रथम 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 ११९. कायं समारंभ - किसी प्राणी को हाथ, शस्त्र आदि चला कर परितापना देना काया का समारंभ है। १२०. कायं आरंभ - किसी प्राणी को हाथ, शस्त्र आदि से मार देना काया का आरंभ है। थप्पड़ दिखाना - हाथ से सरंभ, थप्पड़ मार देना - हाथ से समारंभ। . संकप्पो सरंभो, परिताव करो भवे समारंभो। आरंभो उद्दवओ, सवनयाणं विसुद्धाणं॥ १२१-१२५. संलेखना के पाँच अतिचार .. १२१. इहलोगासंसप्पओगे - इस लोक में राजा चक्रवर्ती आदि के सुख की इच्छा करना 'इहलोक आशंसा प्रयोग' है। १२२. परलोगासंसप्पओगे - परलोक में देवता इन्द्रादि. के सुख की इच्छा करना 'परलोक आशंसा प्रयोग' है। १२३. जीवियासंसप्पओगे - महिमा प्रशंसा फैलने पर बहुत काल तक जीवित रहने की आकांक्षा करना 'जीविताशंसा प्रयोग' है। __ १२४. मरणासंसप्पओगे - कष्ट होने पर शीघ्र मरने की इच्छा करना 'मृत्यु आशंसा प्रयोग' है। १२५. कामभोगासंसप्पओगे - काम-भोग की अभिलाषा करना 'काम भोग आशंसा प्रयोग' है। पाँच महाव्रत की पचीस भावनाओं का विस्तार प्रथम महाव्रत की५भावनाएं १. ईया समिति भावना - 'प्राणातिपात विरमण' नामक प्रथम महाव्रत की रक्षा रूप दया के लिए और स्व-पर गुण वृद्धि के लिये साधु चलने और ठहरने में युग प्रमाण भूमि पर दृष्टि रखता हुआ ईर्या समिति पूर्वक चले, जिससे उसके पाँव के नीचे दब कर कीट पतंग आदि त्रस तथा सचित्त पृथ्वी और हरी लीलोती आदि स्थावर जीवों की घात न हो जाय। चलते या बैठते समय साधु सदैव फूल, फल, छाल, प्रवाल, कन्द, मूल, पानी, मिट्टी, बीज और हरितकाय को वर्जित करता बचाता हुआ सम्यक् प्रवृत्ति करे। इस प्रकार ईर्या समिति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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