SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 77 एयं (एय) 1/1 सवि । खु (अ) = सचमुच । नाणिणो (नाणि) 6/1 वि । सारं (सार) 1/1 । जं (अ) = कि । न (अ) = नहीं। हिंसइ (हिंस) व 3/1 सकः । कंचण (क) 2/1 स 'चरण' अनिश्चयात्मकता प्रकट करता है । अहिंसा समयं [ (अहिंसा)-(समया) 2/1। चेव (अ) = निश्चय ही एतावं (एताव) ६/1 वि। ते (त) 1/2 स । वियाणिया* (वियाण) संक। *पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 834 से 8371 78 सम्वे (सव्व) 1/2 सवि । जीवा (जीव) 1/2 । वि (अ) = ही । इच्छति (इच्छ) व 3/2 सक। जीविउं' (जीव) हेकृ । न (म)= नहीं मरिज्जिउं* (मर) हेकृ । तम्हा (अ) = इसलिए । पाणवहं [ (पाण)(वह) 2/1] घोरं (घोर) 2/1 वि । निग्गंथा (निग्गंथ) 1/2 । वज्जयंति (वज्जयंति) व 3/2 सक अनि । णं (त) 2/1 स। 1 इच्छार्थक धातुओं के साथ.हेत्वर्थ कृदन्त का प्रयोग होता है। "मर' क्रिया में 'ज्ज' प्रत्यय लगाने पर अन्त्य 'अ' का 'इ' होने से 'मरिज्ज' बना और इसमें हेत्वर्थ कृदन्त के 'उं' प्रत्यय को जोड़ने से पूर्ववर्ती 'अ' को 'इ' होने के कारण 'मरिज्जिउँ' बना है। इसका अर्थ 'मरिउं' की तरह होगा। 79 जह (अ) जैसे । ते (तुम्ह) 4/1 स । न (अ) = नहीं । पिमं (पिम) 1/1 वि । दुक्खं (दुक्ख) 1/1 । जाणिव (जाण) संकृ । एमेव (म) = इसी प्रकार । सव्वजीवाणं [ (सव्व) सवि-(जीव) 4/2] सम्बायरमुवउत्तो [ (सव्व)+ (प्रायरं+ (उवउत्तो) ] [ (सव्व) सवि- (मायर) 2/1] उवउत्तो' (उवउत्त) पंचमी अर्थक 'प्रो' प्रत्यय । अत्तोवम्मेण [ (अत्त)+उवम्मेण [ (अत्त)-(उवम्म) 3/1] । कुणसु (कुण) विधि 2/1 सक । दयं (दया) 2/1। 1. उवउत्त + ओ=उवउत्तरोन्ने उवउत्तो। 124 ] [ समणसुत्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004166
Book TitleSamansuttam Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy