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________________ 24 गरिमधिगस्स [(गदि)+ (अधिगदस्स)] गदि (गदि) 2/1 । अधिगदस्स (मधिगद) भूक 6/1 अनि । देहो (देह): 1/1। देहावो (देह) 5/1 । इंदियाणि (इंदिय) 1/2 । जायंते (जाय) व 3/2 अक । तेहिं (त) 3/2 स । (अ) = ही। विसयग्गहनं [(विषय)-(ग्गहण) 1/1] । तत्तो (अ) = उस कारण से । रागो (राग) 1/1। वा (प्र) = और । बोसो (दोस) 1/11 ___1 कभी कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पंचमी के स्थान पर पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) . 25 जायवि (जाय) व 3/1 अक । जीवस्सेवं [(जीवस्स)+ (एवं)] जीवस्स (जीव) 6/1 । एवं (अ) = इस प्रकार । भावो (भाव) 1/1। संसारचक्कवालम्मि [(संसार)-(चक्कवाल) 7/1] । इदि (प्र) = इस प्रकार। जिणवरेहिं (जिणवर) 3/2। भाणिवो (भण) भूकृ 1/1। प्रणाविणिधणो (अरण+आदि+णिधणो) = (प्रणादिणिधण) 1/1 वि । सणिषणो (स-रिणधण) 1/1 वि । वा (प्र) = या। 26 जम्मं (जम्म) 1/1। दुक्खं (दुक्ख) 1/1 | जरा (जरा) 1/1। रोगा (रोग) 1/2 । य (म) =और । मरणाणि (मरण) 1/2 । अहो (प्र):खेद । दुक्खो (दुक्ख) 1/1। हु (अ) =ही। संसारो (संसार) 1/1 । जत्थ (अ)= जहाँ पर । कोसन्ति (कीस) व 3/2 अक। जंतवो (जंतु) 1/2। 27 जं. (ज) 2/1 सवि । समयं (समय) 2/1। जीवो (जीव) 1/1। आविसइ (आविस) व 3/1 अक । जेण (ज) 3/1 सवि । भावेण (भार) 3/1 । सो (त) 1/1 स । तंमि (त) 7/1 सवि । समए (समय) 7/1 । - सुहासुहं (सुह) + (असुह)] [(सुह) वि-(मसुह) 2/1 वि] । बंधए (बंध) व 3/1 सक.। कम्मं (कम्म) 2/1। 1 सप्तमी विभक्ति के स्थान पर कभी कभी द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137) 110 ] [ समणसुत्तं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004166
Book TitleSamansuttam Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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