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________________ 70 जैनन्यायपञ्चाशती तद् अनित्यम्। इत्थम् अपेक्षाभेदेन वस्तु नित्यानित्य मिति स्याद्वादस्य फलितमिदम् । जैनदर्शन के अनुसार उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य सत् यह वस्तु का लक्षण किया गया है। जिस वस्तु में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य ये तीनों साथ रहते हैं वही सत् है । उत्पाद का अर्थ है - उत्तरोत्तर आकार की उत्पत्ति । व्यय का अर्थ है - पूर्व आकार का विनाश। उत्पाद और व्यय इन दोनों पर्यायों में अन्वित तत्त्व ही ध्रुवत्व है। यहां यह शंका होती है कि उत्पाद और व्यय ये दोनों परस्पर विरोधी तत्त्व हैं। इस स्थिति में ये दोनों विरोधी तत्त्व एक साथ एक स्थान में कैसे रह सकते हैं? इस प्रश्न के उत्तर में कारिकाकार उत्तर देते हैं कि प्रत्येक वस्तु में दो अंश होते हैं - एक द्रव्यांश और दूसरा पर्यायांश । उनमें द्रव्यांश वस्तु का शाश्वत रूप है। उसमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन और विनाश नहीं होता। इसलिए वस्तु का जो ध्रौव्यत्व है वह द्रव्यांश को लेकर ही होता है। उसमें किसी भी प्रकार की विसंगति नहीं होती । वस्तु में जो विकार अथवा व्यय होता है वह सब पर्याय की अपेक्षा से होता है । इस प्रकार एक ही वस्तु में दो विरोधी धर्म साथ रहते ही हैं । वास्तव में द्रव्य निरपेक्ष सत्य है। जब वह व्यवहार में प्रवृत्त होता है तब वहां अपेक्षाभेद की आवश्यकता होती है । तब ही वहां स्याद्वाद घटित होता है। जैनदर्शन अनेकान्तवादी दर्शन है । स्याद्वाद प्रतिपादन की पद्धति है । वस्तु के लक्षण में द्रव्यांश की अपेक्षा से वस्तु नित्य है और पर्यायांश की अपेक्षा से वह अनित्य है। इस प्रकार अपेक्षाभेद से वस्तु नित्यानित्यं है, यही स्याद्वाद का फलित है। (३२) उत्पादव्ययध्रौव्याणां परस्परमन्योन्याश्रयः सम्बन्ध इति तथ्यं वक्तुमुपक्रमते उत्पाद-व्यय और ध्रौव्य का परस्पर अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है, इस तथ्य को कारिका के द्वारा बता रहे हैं स्थितिव्ययरहितात्वान्नास्त्युत्पादो हि केवलः । नाशोऽपि केवलो नास्ति स्थित्युत्पत्तिविवर्जितः ॥ ३२ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004165
Book TitleJain Nyaya Panchashati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishwanath Mishra, Rajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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