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________________ 30 जैनन्यायपञ्चाशती रसन-इन्द्रिय का उपघात वहां होता हैं, जहां तिक्तकटु और कषायादि पदार्थ पीए जाते हैं, आस्वादित किए जाते हैं या खाए जाते हैं। वहां तो केवल तिक्तादि रस की ही अनुभूति होती है। इसके विपरीत सुमधुर पेय आदि की उपलब्धि होने पर अनुकूलता की अनुभूति होती है। अनुकूलता ही यहां अनुग्रह है। घ्राणइन्द्रिय का उपघात दुर्गन्धमय या अपवित्र पदार्थों के सूंघने से होता है। इसी प्रकार कर्पूर आदि सुगन्धमय पदार्थों का सम्पर्क होने पर अनुग्रह होता है। यही अनुकूल स्थिति अनुग्रह है। .. . श्रोत्र-इन्द्रिय का भेरी आदि कर्कशशब्दों को सुनने पर कर्णपटल की विकृति ही उपघात है। इसके विपरीत मन्द-मन्द ताललयबद्ध सुमधुर संगीतमयशब्द के श्रवण से होने वाली तृप्ति ही अनुग्रह है। यह उपघात और अनुग्रह केवल चार इन्द्रियों में ही होता है, क्योंकि ये इन्द्रियां विषय के साथ संयुक्त होती हैं। चक्षु और मन का पदार्थों के साथ संयोग नहीं होता, इसलिए इनका उपघात और अनुग्रह भी नहीं होता। इस स्थिति में कौन मतिमान् चक्षु और मन के प्राप्यकारित्व को सिद्ध कर सकता है? कोई भी नहीं कर सकता। यहां यह भी जानना चाहिए कि उपघात और अनुग्रह विषयग्राहक इन्द्रियों में ही होता है, वैसी शक्ति मन और चक्षु में नहीं है। . (१५) अञ्जनमपि चक्षुषः प्राप्यकारित्वं साधयितुं न शक्नोतीत्येव प्रतिपादयति अंजन भी चक्षु के प्राप्यकारित्व का साधक नहीं हो सकता, इसी बात का प्रतिपादन कर रहे हैं दूरतो भवितुं शक्यं यदञ्जनादिगोचरम्। तत्तदक्षिगतं नैव कथं तत्प्राप्यकारिता?१५॥ आंख में आंजने का अंजन आदि दूर से चक्षु का विषय हो सकता है। वह जब आंख में आंजा जाता है तब वह चक्षु का विषय नहीं बनता। अञ्जन को तैजस मानकर चक्षु प्राप्यकारी कैसे हो सकता है? न्यायप्रकाशिका केचन अञ्जनंमर्थप्रकाशकत्वेन तैजसं मत्वा चक्षुषः प्राप्यकारित्वं साधयितुमिच्छन्ति। तेषां मतमयुक्तम्। यतो हि अञ्जनं यदा दूरस्थितं भवति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004165
Book TitleJain Nyaya Panchashati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishwanath Mishra, Rajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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