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________________ जैनन्यायपञ्चाशती स्वतन्त्रः कृष्णवर्णोऽपि नाभावो वर्णसंततेः। अवर्णत्वादमूर्तत्वं मूर्तामूर्तभिदेव का॥ ४६ ।। कृष्ण वर्ण भी स्वतन्त्र है। वर्णसन्तति (Spectram) का अभाव नहीं है। जिसका वर्ण नहीं है वह अमूर्त होता है। अवर्ण अमूर्त का लक्षण है। यदि कृष्ण वर्ण मूर्त है, फिर उसको वर्ण न माना जाय तो मूर्त और अमूर्त का अन्तर ही क्या रहेगा? न्यायप्रकाशिका तमः एकं द्रव्यं पदार्थो जैनदर्शनाभिमतम्।अत्र च मानं नीलं तमश्चलति' इति व्यवहार एव। न्यायपरम्परायां तमसो द्रव्यत्वं नैव स्वीकृतम्। तत्र या गमनक्रियाप्रतीतिः सा तु दीपापसरणक्रिया प्रयुक्ता औपाधिकी नतु वास्तविकी। तस्मात् तमो न द्रव्यमिति तन्मतम्। तत् खण्डयन् लिखत्यत्र यत्-तमसि या नीलरूपप्रतीतिः सा तु वास्तविकी नं तु औपाधिकी। तत्र कृष्णवर्णः स्वतन्त्रोऽस्ति।तत्र वर्णसन्तत:-रङ्गपरंपराया अभावो नास्ति।यत्र वर्णसन्ततेरभावो भवति तद् वस्तु अमूर्तमित्युच्यते। .. ___ अवर्णत्वम्-वर्ण रहितत्वं, रङ्गरहितत्वं वा अमूर्तस्य लक्षणमस्ति। यत्र अवर्णत्वं तत्र तत्र अमूर्तत्वम् कृष्णवर्णस्तु मूर्त एव। सर्वं दृश्यत एव तमसि कृष्णवर्णः। अस्यां स्थितौ लब्धसत्ताकस्य कृष्णवर्णस्य वर्णत्वं यदि नस्वीक्रियते तदा मूर्तामूर्तयोः को भेदः? मूर्तस्यामूर्तस्य च भेदको वर्ण (रङ्ग) एव भवति। यत्र वर्णवत्वं तत्र मूर्तत्वम्, यत्र च वर्णरहितत्वं तत्रामूर्तत्वम्। यदि सत्यपि वर्णे तस्य वर्णत्वं न स्वीक्रियते तदा मूर्तामूर्तयोरन्तरं किम्? असति वर्णे कालोऽमूर्तस्तथा सत्यपि कृष्णवर्णे तमोऽपि अमूर्तमिति चिन्तनीयो विषयःस्यात्। तस्मात् तमसः कृष्णवर्णत्वात् द्रव्यत्वं स्वीकरणीयमेव। तम द्रव्य है, यह बात जैनदर्शनाभिमत है। इस बात की सिद्धि के लिये, नीलं तमश्चलति' यह उक्ति प्रस्तुत की जाती है। यहां नील पद से तम के वर्ण की तथा चलन क्रिया से उसके कर्मवत्ता की प्रतीति होती है। इस प्रकार गुण और क्रिया का आश्रय होने से तम द्रव्य है यह बात सिद्ध होती है। न्यायदर्शन के अनुसार तम को द्रव्य नहीं माना जाता है। इनका कहना है कि तम में जो नील रूप की प्रतीति होती है वह भ्रम है, वास्तविक नहीं है। चलन क्रिया की प्रतीति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004165
Book TitleJain Nyaya Panchashati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishwanath Mishra, Rajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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