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________________ ५८ में पधारो, हुं आपरो श्रावक छु, आप फुरमावौ सो वचन प्रमाण करूं । इसौ वचन सुणी लाभ जांणी धनपाल रे घरे आया । सं० १९८२ धनपाल रे उपगार थी सर्व चवाण नख भी खरतर गछै श्रावक थया कवित्त: दूहा - इग्यारे व्यासी समै, विषधर नौ विपटाल । जीवाड्यौ धनपाल नै, सदगुर पहवौ भाल | -- खरतर गछ रा श्रावक छै तिके आषाढ़ सुद ११ दिने दादाजी श्री जिनदत्तसूरिजी रा पगला तोला १। घडावी, प्रतिष्ठा करावी पूनम पूनम्र पूजीजै तो वंस वधै, लखमी सौभाग जस वधै ॥ हिवै रतनपुरा गोत्रे साराई ९, तेहना नाम - रतनपुरा १ लाइ २ कटारिया ३ कोटेचा ४ सापप्रहा ५ सापूरीया ६ नराणा गोत्र ७ भलाणीया ८ रामसेणा ए शाखा । कटारीया सहवाज रा उठया केरवासे देवातडे आसलाई में सापद्रही नख थयौ । कटारिया में सुं नख नीकल्यौ । गोरी पातसाह रौ मंत्रीपणौ कीयौ, तिणथी "मंत्री" कहाणा । Jain Education International मांडवगढे मुंहता झांझणसी सिद्धाचलजी री यात्रा गया जद बाणुं लाख मालवा रौ दांण ईज्यारै थौ सो बरस १ री पेदास प्रभुजी रे भेट कीवी, जद दुजा लोकां ईसको कर पातसाह सुं मालम करी, जद पातसा रीस कीवी । जद मुंतो झांझणसी कटारी पेरी पेटी बांधने पातसा रे हजूर आयौ, सर्व हकीगत कही आपका बोलबाला पीर के आगे कर आया, तब पातसाह बहोत कुसी हुया । पेटी खोल प्राण मुकीयो । तिहाँ थी ' कटारिया' नख थयो । खरतर गच्छ में हुया । भैरू खेत्रपाल जेशलमेर से छै । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004163
Book TitleJainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherJinharisagarsuri Gyan Bhandar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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