SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यात्रा की । मार्गवर्ती स्वधर्मियों में एक एक मुद्रिका व थाली भर के पुंगीफल वितरण किये। समधरादि फोफलिया नाम से प्रसिद्ध हुए। उसी वंश में तेजपाल, वील्हा, मांडण, ऊदा, नामदेव, जेसल, वत्सराज आदि पुरुष हुए । वत्सराज के वंशज वच्छावत कहलाए इसी प्रकार बोहित्थ वंश में दसाणी, जेगावत, बुंगराणी, मुकीम आदि शाखाएं विशाल वट वृक्ष की भांति निकली। इनके वंशजोंने बडे-बडे काम किये विशेष जानने के लिए कर्मचन्द्र मन्त्रिवंश प्रबन्ध द्रष्टव्य है। बावेल, कोठारी संघवी जिनचन्द्रसूरि-कलिकाल केवली श्री जिनचन्द्रसूरि सं० १३७१ में बाबला (बाबेरा पुर में पधारे । वहां का चौहान राजा रणधीर गलित कुष्ट की व्याधि से पीडित था । नाना उपचार करने पर भी वह स्वस्थ न हुआ तो गुरु महाराज के शरण में आया । सूरिजी ने उसे चक्रेश्वरी देवी प्रदत्त औषधि का उपचार बतला कर सात दिन में स्वस्थ कर दिया । राजा ने सूरि महाराज के पास विधिवत् जैनधर्म स्वीकार किया। बावेला गांव से उसके वंशजों का बाबेल गोत्र प्रसिद्ध हुआ । कोठारी, संघवी आदि शाखाएं उसी गोत्र से निकली और भी सूरिजी ने अनेक भव्य जीवों को प्रतिबोध दिया । डागा - श्री जिमकुशलसूरि-एक बार गोढवाड-नाडोल नगर में दादा श्री जिनकुशलसूरिजी महाराज पधारे । वहाँ के क्षत्रिय डूंगरसिंह चौहान राजा ने दिल्लीपादशाह के राज्या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004163
Book TitleJainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherJinharisagarsuri Gyan Bhandar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy