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________________ प्रत्यवाय: ( प्रत्यवाय) 1 / 1. न ( अ ) = नहीं विद्यते (विद्) व 3 / 1 श्रक स्वल्पमप्यस्य[ (स्वल्पम्) + (अपि) + (अस्य) ] स्वल्पम् (स्वल्प) 1 / 1 वि. अपि (प्र) = भी. प्रस्य (इदम्) 6 / 1 स धर्मस्य (धर्म) 6/1 त्रायते ( ) व 3 / 1 सक महतो भयात् [ ( महतः ) + ( भयात् ) ] महतः (महत्) 5 / 1 वि. भयात् (भय) 5 / 1. 7. व्यवसायात्मिका [ (व्यवसाय) + ( प्रात्मिका) ] [ (व्यवसाय) - ( प्रात्मक स्त्री + प्रात्मिका 1 ) 1 / 1 वि] बुद्धिरेकेह [ ( बुद्धि:) + (एका) + (इह) ] स्त्री बुद्धि: (बुद्धि) 1 / 1 . एका ( एक + एका ) 1 / 1 वि. इह ( अ ) = इस दशा में कुरुनन्दन ( कुरुनन्दन) 8 / 1 बहुशाखा ह्यनन्ताश्च [ ( बहुशाखा:) + (हि) + (अनन्ताः) + (च)] बहुशाखा: ( बहुशाखा ) 1/3 वि. हि स्त्री ➡ = तथा ( अ ) = निस्संदेह . अनन्ताः (अनन्त प्रनन्ता) 1 / 3 वि. च (प्र) बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् [ ( बुद्धयः) + (अव्यवसायिनाम् ) ] बुद्धयः (बुद्धि) 1 / 3. अव्यवसायिनाम् ( अ - व्यवसायिन् ) 6 / 3 वि. [ ( भोग) - ( ऐश्वर्य) - 8. भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम् [ ( भोग) + ( ऐश्वर्य) + (प्रसक्तानाम्) + (तया) + ( अपहृत ) + ( चेतसाम् ) ] प्रसञ्ज्→प्र-सक्त) भूकृ 6 / 3] तया भूकृ - (चेतस् ) 6/3] व्यवसायात्मिका [ (व्यवसाय) - ( प्रात्मिका ) 1 / 1 वि] (समाधि) 7 / 1 न ( अ ) = नहीं विधीयते (वि- धा) व कर्म 3 / 1 सक. (तत्) 3 / 1 स [ ( अपहृत ) [ (व्यवसाय) + ( प्रात्मिका ) ] बुद्धिः (बुद्धि) 1 / 1 समाधौ 1. 66 ] स्त्री 'प्रात्मक मात्मिका' समास के अन्त में लगता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only [ गीता www.jainelibrary.org
SR No.004162
Book TitleGeeta Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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