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________________ 48. दसणणाणुवदेसो सिस्सग्गहणं च पोसणं तेसिं। चरिया हि सरागाणं जिणिंदपूजोवदेसो य॥ . दंसणणाणुवदेसो सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान का जन-शिक्षण शिष्यों का ग्रहण सिस्सग्गहणं और पोसणं [(दसणणाण)+(उवदेसो)] [(दसण)-(णाण)(उवदेस) 1/1] [(सिस्स)-(ग्गहण) 1/1] अव्यय (पोषण) 1/1 (त) 6/2 सवि (चरिया) 1/1 अव्यय (सराग) 6/2 वि तेसिं चरिया विकास/पुष्टि उनका चर्या निश्चय ही सरागों (शुभोपयोगी श्रमणों) की सरागाणं जिणिंदपूजोवदेसो [(जिणिंदपूजा)+(उवदेसो)] [(जिणिंद)-(पूजा)(उवदेस) 1/1] अव्यय जिनेन्द्र देव की पूजा/ भक्ति का उपदेश तथा अन्वय- सणणाणुवदेसो सिस्सग्गहणं च तेसिं पोसणं य जिणिंदपूजोवदेसो सरागाणं हि चरिया। अर्थ- सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान का जन-शिक्षण, शिष्यों का ग्रहण और उनका विकास/पुष्टि (करना) तथा जिनेन्द्र देव की पूजा/भक्ति का (सर्वोपयोगी) उपदेश-(ये सब) सरागों (शुभोपयोगी श्रमणों) की निश्चय ही चर्या है। (58) प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
SR No.004160
Book TitlePravachansara Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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