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________________ 31. आहारे व विहारे सं कालं समं खमं उवधिं जाणत्ता ते समणो व ृदि जदि अप्पलेवी ap सो आहारे व विहारे देसं कालं समं खमं उवधिं । जाणित्ता ते समणो वट्टदि जदि अप्पलेवी सो।। (आहार) 7 / 1 अव्यय (faær) 7/1 (देस) 2/1 (काल) 2 / 1 (सम) 2 / 1 (खम) 2 / 1 वि ( उवधि) 2 / 1 (जाण) संक्र (त) 2/2 सवि ( समण ) 1 / 1 (वट्ट) व 3 / 1 सक अव्यय [(अप्प) वि- (लेवी) 1/1 वि अनि] (त) 1 / 1 सवि आहार चर्या में अथवा विहार में क्षेत्र काल श्रम सहनशक्ति शरीरावस्था जानकर उन सबको श्रमण . आचरण करता है यदि थोड़े से कर्म से ही बँधनेवाला वह • अन्वय- जदि समणो आहारे व विहारे देतं कालं समं खमं उवधिं ते जाणित्ता वट्टदि सो अप्पलेवी । अर्थ- यदि श्रमण आहार चर्या में अथवा विहार में क्षेत्र, काल, श्रम, सहनशक्ति (तथा) (परिग्रहरूप ) शरीरावस्था - उन सबको जानकर आचरण करता है (तो) वह थोड़े से कर्म से ही बँधनेवाला (होता है ) । प्रवचनसार (खण्ड- 3 ) चारित्र - अधिकार (41)
SR No.004160
Book TitlePravachansara Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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