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________________ 65. पप्पा इट्टे विसये फासेहिं समस्सिदे सहावेण। परिणममाणो अप्पा सयमेव सुहं ण हवदि देहो।। पप्पा विसये (पप्पा) संकृ अनि (इट्ठ) 2/2 वि (विसय) 2/2 (फास) 3/2 प्राप्त करके वांछित विषयों को स्पर्शन आदि इन्द्रियों फासेहि पर समस्सिदे सहावेण पूर्णतः निर्भर स्वभावपूर्वक परिणममाणो रूपान्तरण करता हुआ अप्पा आत्मा सयमेव (समस्सिद) 2/2 वि (सहावेण) तृतीयार्थक अव्यय (परिणम) वकृ 1/1 (अप्प) 1/1 . [(सयं) + (एव)] सय (अ) = स्वय एव (अ) = ही (सुह) 2/1 अव्यय (हव) व 3/1 सक (देह) 1/1 स्वयं सुख को नहीं प्राप्त करता है हवदि देहो देह . अन्वय- फासेहिं समस्सिदे इडे विसये पप्पा अप्पा एव सयं सहावेण परिणममाणो सुहं हवदि देहो ण। अर्थ- स्पर्शन आदि इन्द्रियों पर पूर्णतः निर्भर वांछित विषयों को प्राप्त करके आत्मा ही स्वयं (अपने) (अशुद्ध) स्वभावपूर्वक रूपान्तरण करता हुआ सुख को प्राप्त करता है, देह नहीं। 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137) 2. 'हव' क्रिया सकर्मक की तरह भी प्रयुक्त होती है। (पाइय-सद्द-महण्णवोः पृ. 943) प्रवचनसार (खण्ड-1) (77) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004158
Book TitlePravachansara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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