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________________ 18. उप्पादो य विणासो विज्जदि सव्वस्स अट्ठजादस्स। पज्जाएण दु केणवि अट्ठो खलु होदि सब्भूदो।। उप्पादो उत्पाद . य और विणासो विज्जदि सव्वस्स अठ्ठजादस्स पज्जाएण विनाश होता है समस्त.. पदार्थ-समूह में पर्याय से (उप्पाद) 1/1 - अव्यय (विणास) 1/1 (विज्ज) व 3/1 अक (सव्व) 6/1 सवि [(अट्ठ)-(जाद) 6/1] . (पज्जाय) 3/1 . अव्यय केण (क) 3/1 सवि वि (अ) = निश्चय ही (अट्ठ) 1/1 अव्यय (हो) व 3/1 अक (सब्भूद) 1/1 वि किन्तु केणवि किसी खलु निश्चय ही पदार्थ वास्तव में रहता है विद्यमान होदि सब्भूदो अन्वय- सव्वस्स अट्ठजादस्स केणवि पज्जाएण उप्पादो य विणासो विज्जदि दु अट्ठो खलु सब्भूदो होदि। अर्थ- समस्त पदार्थ-समूह में निश्चय ही किसी (एक) पर्याय से उत्पाद और विनाश होता है किन्तु पदार्थ वास्तव में विद्यमान (अस्तित्वरूप) (ध्रौव्य) (ही) रहता है। ____1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-134) (30) प्रवचनसार (खण्ड-1) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004158
Book TitlePravachansara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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