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________________ 8. परिणमदि जेण दव्वं तक्कालं तम्मय त्ति पण्णत्तं। तम्हा धम्मपरिणदो आदा धम्मो मुणेदव्वो।। परिणमदि (परिणम) व 3/1 अक रूपान्तरण को प्राप्त होता है जिससे जेण द्रव्य उसी समय उसरूप (ज) 3/1 सवि . दव्वं (दव्व) 1/1 तक्कालं अव्यय *तम्मय' त्ति [(तम्मय)+ (इति)] (मूल शब्द) तम्मयं (तम्मय) 1/1 वि इति (अ) = ही पण्णत्तं (पण्णत्त) भूकृ 1/1 अनि अव्यय धम्मपरिणदो [(धम्म)-(परिणद) भूकृ 1/1 अनि] आदा. (आद) 1/1 धम्मो (धम्म) 1/1 मुणेदव्वो... (मुण) विधिकृ 1/1 कहा गया तम्हा इसलिये धर्म (समत्व) से परिवर्तित आत्मा धर्म (समत्व) समझा जाना चाहिये . अन्वय- जेण दव्वं परिणमदि तक्कालं तम्मय त्ति पण्णत्तं तम्हा धम्मपरिणदो आदा धम्मो मुणेदव्वो। ___-अर्थ- (जिस समय) जिस (भाव) से द्रव्य रूपान्तरण को प्राप्त होता है उसी समय उसरूप ही कहा गया (है)। इसलिए धर्म (समत्व) से परिवर्तित आत्मा धर्म (समत्व) (ही) समझा जाना चाहिये। प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517) यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'तम्मयं' के स्थान पर 'तम्मय' किया गया है। 1. प्रवचनसार (खण्ड-1) (19) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004158
Book TitlePravachansara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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