SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1. एस सुरासुरमणुसिंदवंदिदं धोदघाइकम्ममलं। पणमामि वड्डमाणं तित्थं धम्मस्स कत्तारं।। (एत) 1/1 सवि .यह सुरासुरमणुसिंदवंदिदं [(सुर)+(असुरमणुसिंदवंदिद)] [(सुर)-(असुर)-(मणुसिंद)- देवताओं, दानवों, (वंदिद) भूक 2/1] राजाओं द्वारा वंदना किये गये धोदघाइकम्ममलं [(धोद) भूकृ अनि- धो दिया (घाइकम्म)-(मल) 2/1] घातिया कर्मरूपी मैल को पणमामि वड्डमाणं तित्थं . (पणम) व 1/1 सक (वड्डमाण) 2/1 (तित्थ) 2/1 वि (धम्म) 6/1 .. (कत्तार) 2/1 वि प्रणाम करता हूँ श्री वर्धमान को तारने में समर्थ धर्म के करनेवाले (उपदेशक) धम्मस्स कत्तारं - अन्वय- एस वड्डमाणं पणमामि सुरासुरमणुसिंदवंदिदं धोदघाइकम्ममलं तित्थं धम्मस्स कत्तारं। ... अर्थ- यह (मैं) श्री वर्धमान (तीर्थंकर) को प्रणाम करता हूँ, (ऐसे) . (वर्धमान) (को) (जो) देवताओं, दानवों और राजाओं द्वारा वंदना किये गये (हैं), (जिन्होंने) घातिया कर्मरूपी मैल को धो दिया (है), (जो) (प्राणियों को) तारने में समर्थ (हैं) (तथा) (जो) धर्म के करनेवाले (उपदेशक) (हैं)। प्रवचनसार (खण्ड-1) (11) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004158
Book TitlePravachansara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy