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________________ सम्मति द्रव्यसंग्रह आपके द्वारा संपादित एवं श्रीमती शकुन्तला जैन द्वारा अनूदित 'द्रव्यसंग्रह ' ग्रन्थ प्राप्त कर अतीव हर्ष का अनुभव हुआ। वस्तुतः इस ग्रन्थ की प्रत्येक गाथा के प्रत्येक पदों का अलग-अलग हिन्दी अनुवाद वह भी प्राकृत व्याकरण के आधार पर समझाते हुए अन्वय और अर्थ सहित - इन सब विशेषताओं के कारण इतना सरल-सहज बन गया है कि इस ग्रन्थ के आधार पर प्राकृत भाषा के दूसरे ग्रन्थों को समझा जा सकता है। वस्तुतः इस ग्रन्थ को पढ़कर ऐसा लगा जैसे यह द्रव्यसंग्रह का नया अवतार ही हो गया हो। अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जैनविद्या संस्थान के माध्यम से प्राकृतअपभ्रंश भाषाओं का जो उत्कर्ष और प्रसार आपके और आपकी शिष्य मण्डली के माध्यम से हो रहा है, उसके लिए सब आपके चिरऋणी रहेंगे। नये-नये ग्रन्थ आफ् नये-नये रूपों में प्रकाशित कर मुझे भिजवा देते हैं, इसके लिए हम आपके और संस्थान के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। शेष शुभ। Jain Education International प्रो. फूलचन्द जैन प्रेमी पूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, जैनदर्शन विभाग सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी एवं निदेशक बी. एल. प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान दिल्ली निर्देशन एवं संपादन- डॉ. कमलचन्द सोगाणी अनुवादक- श्रीमती 'शकुन्तला जैन प्रवचनसार ( खण्ड - 1 ) For Personal & Private Use Only (157) www.jainelibrary.org
SR No.004158
Book TitlePravachansara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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