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________________ भांति शिव और विष्णु की मूर्ति विराजमान थी, इसी और अंशों में भी दक्षिणांशों में जैनियों के विग्रह चिह विराजमान थे। इनके पास ही गुफाओं में जैन और बहुतसी बौद्धों की मूर्तियां थी। कोई खड़ी थी, कोई बैठी थी, परन्तु इसकी दक्षिण ओर महाभारत में विख्यात पाण्डवों के चिह विराजमान थे। सौभाग्य से मेरे साथ मेरे जैन गुरु थे, इन्होने कहा कि ये पंच मूर्तियां जैनियों के पंच तीर्थंकरों की है। ऋषभदेव प्रथम, संतनाथ (शांतिनाथ) षोडश, नेमनाथ बाईसवे, पार्श्वनाथ तेईसवे और महावीर चौबीसवें, ये पंच जैन देवता की पंच मूर्तियां हैं। ये पांच पांडवों की मूर्ति नहीं है। चन्द्रप्रभ की मूर्ति भी वहां दिखाई दी। सभी मूर्ति दस ग्यारह फीट ऊंची थी। वास्तव में यह पंच जैन देवता की मूर्तियां है या पांच पांडवों की मूर्तियां है, इस स्थान पर विचार करना असम्भव हो गया है। उस गुफा के पास ही धमनार में एक और बड़ी गुफा है। पहली गुफा के भीतर से ही उस गुफा में जाने का रास्ता है। वह सर्वसाधारण में भीम के राजा के नाम से विदित है। इस गुफा की लम्बाई 100 फीट और चौड़ाई 80 फीट है गुफा का प्रधान कमरा भीम के अस्त्रागार के नाम से पुकारा जाता था, एक बाहर की कोठरी के रास्ते से इसमें जाना होता है, वह कोठरी 20 फीट की है, अस्त्रागार की गुफा के भीतर एक घर है। वह घर 30 फीट लम्बा और 15 फीट चौड़ा है, उस कमरे के चारों ओर धर्मशाला बनी है। तीर्थयात्री यहां आकर ठहरते हैं। यद्यपि यह भी भीम के नाम से विख्यात है, परन्तु अन्यान्य लक्षणों से जैनियों की प्रमाणित होती है। अस्त्रागार के पास ही राजलोक नाम का एक कमरा है, यह पहाड़ आदिनाथ के नाम से विख्यात है। इससे भी विश्वास होता है कि यहां आदिनाथ की पूजा होती रही होगी। एक स्थान में पार्श्वनाथ की भी दो मूर्तियां हैं। टाड के इस उल्लेख से विदित होता है कि यह स्थान सभी धर्मों का समन्वय स्थापित करता है। एलोरा के गुहा मंदिरों में भी यह समन्वय दर्शनीय है। शैव, वैष्णव, जैन और बौद्ध धर्म आदि के विषय में टाड की स्वीकारोक्ति है। इन गुफाओं का समय फर्गुसन के अनुसार पांचवी छठी शताब्दी है।" डॉ.एच.वी.त्रिवेदी ने इनका समय सातवीं शताब्दी बताया है। 12 अब विचारणीय यह है कि क्या इन गुफाओं के सम्बन्ध में टाड का मत मान्य है? फर्गुसन ने इन गुफाओं को बौद्ध स्थापत्य के अन्तर्गत रखा है।13 इम्पीरियल गजेटियर ऑफ इंडिया में भी धमनार की गुफाओं को बौद्ध धर्म से सम्बन्धित माना है। यह एक विचारणीय विषय बन जाता है। जैनतीर्थ सर्वसंग्रह भाग-2 के लेखक ने तो धमनार को जैनतीर्थ के रूप में स्वीकार कर उसका 61 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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