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________________ अध्याय - 1 स्रोत "प्राचीन एवं मध्यकालीन मालवा में जैन धर्म का अध्ययन" विषय का चयन करने के संदर्भ में मुझे भारतीय इतिहास के निर्माण के साधनों में जैनधर्म की सीमित पुस्तकों का संग्रह देखने को मिला। इनमें आचारांगसूत्र, कल्पसूत्र, भद्रबाहु संहिता, पुण्याश्रव, कथाकोश, प्रबन्धचिंतामणि एवं इसी प्रकार के अन्य ग्रन्थों के नाम लिये जा सकते हैं। किन्तु मात्र इस प्रकार के ग्रन्थों से मेरा शोध प्रबन्ध पूर्ण हो जाता यह सम्भव नहीं था । ग्रन्थों के अवलोकन से शीघ्र ही मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि इस विषय में तो अतुल साहित्य उपलब्ध है जिसका चयन (1) Bibliography of Madhya Bharat Part - I Archaeology by Dr. H.V. Trivedi (2) Jain Bibliography by chhotelal Jain (3) जिनरत्नकोशएच.डी. वेलनकर (4) जैन साहित्य और इतिहास - नाथूराम प्रेमी और अन्य ग्रन्थों एवं पत्र-पत्रिकाओं में हुआ है। इस अध्ययन के आधार पर मैंने यह भी जाना कि मालवा में जैन साहित्य और पुरातत्त्व विषयक पर्याप्त सामग्री संचित करनी है और उसको व्यवस्थित रूप से अध्ययन द्वारा ग्रंथित करने की आवश्यकता है। मालवा में जैनधर्म के स्रोतों को हम निम्नांकित विभागों में विभक्त कर सकते हैं: (1) साहित्य - साहित्यिक ग्रंथ, ऐतिहासिक ग्रंथ, प्रशस्ति संग्रह, पट्टावलियां, तीर्थमाला एवं सचित्र ग्रंथ | (2) पुरातत्त्व - शिलालेख, मूर्तिलेख, मूर्तियां, मंदिर एवं गुफाएं । (1) साहित्य - साहित्यिक ग्रन्थों में वैसे तो ऐतिहासिक सामग्री प्रायः नहीं मिलती, किन्तु प्रसंगवश उल्लेख आ जाने से हमें इस प्रकार की जानकारी मिल जाती है। इसके अतिरिक्त साहित्यिक ग्रन्थो में संघों, गणों, गच्छों का भी उल्लेख मिल जाता हैं तथा कहीं कहीं उनकी उत्पत्ति तथा उनकी स्थापना करने वाले आचार्यों एवं उसके प्रसार संबंधी भी सामग्री प्राप्त हो जाती है। कुछ जैन विद्वानों Jain Education International For Personal & Private Use Only 5 www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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