SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्रन्थ उपलब्ध हो जाते थे और इस प्रकार साहित्य सुरक्षित भी रहने लगा। इन शास्त्र भण्डारों में न केवल जैनधर्म से सम्बन्धित ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं वरन् जैनेतर धर्मों के ग्रन्थ भी इनमें संग्रहित हैं। जैन साहित्य और शास्त्र भण्डार हिन्दी साहित्य के इतिहास की दृष्टि से भी पर्याप्त महत्त्वपूर्ण है। कारण कि जैन विद्वानों ने जहां संस्कृत भाषा में अपने साहित्य का सृजन किया वहीं सामान्य जनता के निकट की भाषा प्राकृत और 'अपभ्रंश में भी अनेक ग्रन्थों की रचना की। अपभ्रंश से हिन्दी के विकास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। अपभ्रंश तथा प्रारम्भिक हिन्दी में जैन विद्वानों की अनेक रचनाएं मिलती हैं जो हिन्दी भाषा के विकास तथा इतिहास के अध्ययन के लिये उपयोगी है।. ..... जैनाचार्य कभी एक स्थान पर नहीं रहते। वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर विचरण करते रहते हैं। यही परम्परा प्राचीनकाल में भी थी। यह भी देखने में आया कि यदि एक आचार्य ने राजस्थान में जन्म लिया तो उनकी कर्तव्य भूमि गुजरात या मालवा रही और यदि मालवा में जन्म लिया तो कर्मभूमि राजस्थान यो अन्य प्रदेश रही। इन जैनाचार्यों ने यद्यपि सभी क्षेत्रों में पर्याप्त रूप से कार्य किया किन्तु भारतीय प्राचीन परम्परा का अनुसरण कर इन्होंने स्वयं के विषय में कहीं कुछ भी नहीं लिखा जिससे उनके सम्बन्ध में निश्चित जानकारी का भाव हैं। फिर भी उपलब्ध प्रमाणों से आचार्यों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के अध्ययन से विदित होता है कि मालवा में अनेक आचार्य युग-प्रधान थे। कुछ आचार्य ज्योतिष के विद्वान थे कुछ उच्चकोटि के दर्शनिक, तत्त्ववेत्ता, नैयायिक और कुछ महाकवि की श्रेणी के थे, कुछ साहित्य के मर्मज्ञ पंडित थे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy