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________________ बजर्ग महानुभाव मंदिर में आये, जो शायद मंदिर की व्यवस्था समिति के सदस्य थे और क्रोधित होकर कहने लगे कि किसकी आज्ञा से भण्डार खोला है? जो व्यवस्थापक मेरे साथ थे, उन्होंने पूर्ण स्थिति बड़े ही विनम्र शब्दों में समझाई मगर उन्होंने एक न सुनी। तब मैंने शास्त्र भण्डार को देखने का अपना उद्देश्य उनको बताया और नम्रतापूर्वक उनसे निवेदन किया कि मुझे शास्त्र भण्डार देखने की अनुमति दे दी जावे किन्तु वे नहीं माने और जब तक उन्होंने शांति अनुभव नहीं की जब तक कि शास्त्र भण्डार को ताला नहीं लग गया। इस प्रकार मैं मन्दसौर के इस शास्त्र भण्डार का भी लाभ नहीं उठा. सका। नयापुरा तेरापंथी मन्दसौर में भी एक शास्त्र भण्डार होने की सूचना है किन्तु उसका अवलोकन भी मैं नहीं कर पाया। (3) इन्दौर का शाच भण्डार : श्री महावीर भवन पीपली बाजार में एक शाख भण्डार है जिसके कार्यवाहक एक वकील साहब है। इस शास्त्र भण्डार के लिये एक ट्रस्ट है। मुझे ऐसा विदित हुआ कि यहां सचित्र हस्तलिखित ग्रन्थ भी है। इस सूचना के आधार पर मैं इन्दौर गया और वकील साहब से सम्पर्क स्थापित किया।यद्यपि मुझे वकील साहब का अच्छा सहयोग प्राप्त हुआ तथापि भण्डार के नियमों के कारण मैं शास्त्र भण्डार का लाभ नहीं उठा सका। इस शास्त्र भण्डार का जो नियम मुझे बताया वह यह है कि ट्रस्ट के सदस्यों के समक्ष ही उनकी विशेष अनुमति से शास्त्र भण्डार खुल सकता है। वैसे वर्ष में एक बार . संवत्सरि के समय पूजन आदि के लिये भण्डार खुलता है। इस प्रकार कार्यवाहक महोदय ने भण्डार दिखाने में अपनी असमर्थता दिखाई। मैं निराश इन्दौर से लौट आया। यहां कुछ धार्मिक व्रत, पूजा, प्रतिष्ठा तथा चरित्र आदि विषयों से सम्बन्धित प्रकाशित ग्रन्थ भी हैं। (4) उज्जैन का शास्त्र भण्डार : उज्जैन जैन दिगम्बर भट्टारकों का पीठ रहा है तथा हमें इसकी एक पट्टावली भी मिलती है। इससे यह बात स्वतः प्रमाणित हो जाती है कि यहां शास्त्र भण्डार होना चाहिये किन्तु आज हमें ऐसा कोई ग्रन्थ भण्डार देखने को नहीं मिलता। वैसे नयापुरा दिगम्बर जैन मंदिर में एक शास्त्र भण्डार है जिसमें हस्तलिखित ग्रन्थों के अतिरिक्त प्रकाशित ग्रन्थ भी है। व्यवस्थापक महोदय ने ग्रन्थों को व्यवस्थित रूप से रख रखा है। खाराकुआ स्थित चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर में भी एक विशाल ग्रंथ भण्डार है किन्तु यहां केवल प्रकाशित पुस्तकें ही संग्रहित हैं। हस्तलिखित ग्रन्थ नहीं है। श्री गणिवर्य श्री अभयसागरजी महाराज ने मुझे एक बार चर्चा के दौरान बताया था कि कुछ वर्षों पूर्व जब वे उज्जैन आये थे तब उन्होंने खाराकुआ पर ही किसी एक व्यक्ति के [126 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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