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________________ अध्याय - 8 जैन शाला भण्डार जैसा कि सर्व विदित है, जैन धर्मावलम्बियों ने भी ब्राह्मणधर्म के समान ही अपनी स्मृति के आधार पर ही पीढ़ी दर पीढ़ी अपने ज्ञान को सुरक्षित रखा। जैसे-जैसे साहित्य बढ़ता गया वैसे-वैसे उस साहित्य को मौखिक रूप से याद रखना भी कठिन होता गया। तब सूत्र शैली के माध्यम से साहित्य स्मृति में रखा जाने लगा। जैसा कि स्वाभाविक था, यह सूत्र शैली पर्याप्त लोकप्रिय हुई। किन्तु समय व्यतीत होता गया और ज्ञान का क्षेत्र बढ़ता गया तो साहित्य भी बढ़ता गया, साहित्य की शाखायें भी बढ़ती गई, तब यह सूत्र शैली भी साहित्य को स्थायी रखने में सहायक नहीं हो सकी। दूसरे इसमें अन्य अनेक कठिनाइयां भी आने लगी। जैसे धर्म के मूल सिद्धान्तों की अनिश्चितता, जो व्यक्ति परम्परा रूप से साहित्य को अपनी स्मृति में रखे रहते थे, उनकी मृत्यु। इस प्रकार यह प्रथा बाद में चलकर कठिन एवं असम्भव प्रतीत होने लगी और तब कहीं ज्ञान की विभिन्न शाखाओं के साहित्य को लिपिबद्ध करने का श्रीगणेश हुआ। . शास्र भण्डारों की स्थापना : शास्त्रों के लेखन का कार्य मूल रूप से आचार्यों के द्वारा ही हुआ है। किन्तु अनेक उदाहरण ऐसे भी मिलते हैं जहां अनेक ग्रन्थ कई विद्वानों के संयुक्त प्रयास से भी लिखे गये हैं। किन्तु ग्रन्थ को लिखना और उसको सुरक्षित रखना, ये दोनों भिन्न बाते हैं। इसलिये ग्रन्थों को सुरक्षित रूप में रखने के लिये व्यवस्था होना नितांत आवश्यक था। इसके लिये ग्रन्थ भण्डारों की स्थापना होना भी आवश्यक था। मालवा में सर्वप्रथम ग्रन्थ भण्डार कब और कहां स्थापित करवाया गया इसकी जानकारी नहीं मिलती। किन्तु इतना कहा जा सकता है कि शास्त्र भण्डारों की स्थापना में सबसे बड़ा योगदान जैनाचार्यों का रहा। इसके अतिरिक्त जो जैन धर्मावलम्बी किसी प्रभावशाली पद पर रहा उसने भी शास्त्र भण्डार की स्थापना में यथासम्भव योगदान दिया। किन्तु इस प्रकार के व्यक्तियों की कोई सूची उपलब्ध नहीं। - मालवा के सुलतानं होशंग गौरी के प्रधानमंत्री मंडन ने मांडवगढ़ में एक ज्ञान भण्डार की स्थापना की थी उसमें रखने के लिये एक भगवती सूत्र की प्रति 121 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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