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________________ उनका धार्मिक महत्त्व ही है। ऐसे तीर्थ मालवा में निम्नानुसार है। (1) रतलाम : इस नगर को जैन साहित्य में रत्नपुरी रत्नललामपुरी और धर्मपुरी के नाम से पुकारा गया है। यहां जैन धर्मावलम्बियों की जनसंख्या अधिक है तथा जैन मंदिर भी संख्या में लगभग बारह है। इस कारण इस नगर का आकार अतिशय बढ़ गया और जैनधर्म में तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हो गया। (2) थोवनजी : चन्देरी से पश्चिम में सीधे रास्ते से 14 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। परन्तु सड़क से 21 कि.मी. की दूरी पर पड़ता है। यहां 15 भव्य जिनालय है। सबसे पुराना मंदिर शांतिनाथ का है। जो सेठ पाड़ाशाह द्वारा निर्मित कहा जाता है परन्तु मूर्ति पर लेख नहीं है सबसे विशाल मूर्ति आदिनाथजी की है जो 30 फीट ऊंची है, जिसका निर्माण वैसाख सुदि 5 सं. 1672 में सेठ बिहारीलाल काला ने कराया था। चन्देरी की विख्यात चौबीसी के निर्माता संघाधिपति सवाईसिंह ने यहां भी एक मंदिर बनवाकर आदनाथ की 15 फीट ऊंची एक प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई। यह प्राचीन काल का तपोवन क्षेत्र कहा जाता है। (3) गुरिलागिर : चन्देरी से 11 कि.मी. पूर्व की ओर एक पहाड़ी पर दो मंदिर हैं। एक में 10 फीट ऊंची मूर्ति है और दूसरे में चौबीसी है। यहां भग्नप्राचीर भी है। (4) भीमादांत : चन्देरी से 19 कि.मी. दूर बैरसिया ग्राम के समीप एक पहाड़ी पर 6 फीट ऊंची आदिनाथ का पद्मासनस्थ बिंब है । भीमादांत का शाब्दिक अर्थ बड़ी चट्टान है। एक लेख सं. 1555 फल्गुन शुक्ला 2 का है जो मलपचन्दसूरि की चरण पादुका पर अंकित है। इस लेख में मालवा के सुलतान गयासुद्दीन खिलजी और चन्देरी के सूबेदार शेरखां के नामों का भी उल्लेख है। (5) तेरही : ईसागढ़ से 21 कि.मी. दूर है। प्राचीन नाम 'तेराम्मी' था। मधुमती (महुआ) नदी के तट पर अनेक भग्नावशेष हैं। ग्राम के दक्षिण में चौमुखी जैन मूर्ति है। (6) आमनचार : मुंगावली से 21 कि.मी. है। जैन मंदिरों के भग्नावशेष है। एक मानस्तम्भ में 'सहस्त्रकूट चैत्यालय' (एक हजार मूर्तियां) उत्कीर्ण है। (7) मोहनखेड़ा : धार जिले में है। इस तीर्थ का निर्माण आचार्य श्रीविजय राजेन्द्रसूरि के उपदेश से लूणाजी पोरवाल ने वि. सं. 1940 में करवाया है। इस प्रकार मालवा में दोनों ही सम्प्रदाय के पर्याप्त तीर्थ स्थान हैं। लेकिन कहीं-कहीं ऐसा भी पाया जाता है कि जहां कहीं भी किसी प्राचीन स्थल का उल्लेख जैनधर्म से सम्बन्धित किसी ने बता दिया वहीं जैनधर्म का तीर्थ बन Jain Education International For Personal & Private Use Only 107 www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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