SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (4) आवश्यक मलयगिरि टीका द्वितीय भाग पत्र 387-12 (5) उबस्स माला सटीक पत्र 207 (6) प्रभावक चरित्र पृष्ठ 3 (7) ऋषिमंडल प्रकरण पत्र 192-1 (8) परिशिष्ठ पर्व सर्ग 12 द्वितीय संस्करण पृष्ठ 270 (9) कल्पसूत्र किरणावली पत्र 170-1 (10) कल्पसूत्र सुबोधिका टीका पत्र 511 वज्रस्वामी के पिता धनगिरि इस तुम्बवन के रहने वाले थे। तुम्बवन का उल्लेख तूमैन में मिले एक शिलालेख में भी है। इस शिलालेख में कुमारगुप्त के शासनकाल में एक मंदिर बनवाये जाने का उल्लेख है। 39 तुम्बवन की स्थिति अब पुरातत्व से निश्चित हो गई है। प्राचीनकाल के तुम्बवन का अर्वाचीन नाम तूमैन है। यह स्थान गुना जिले में है। 40 इस ग्राम तूमैन में अनेक भग्नावशेष हैं। एक मूर्ति महावीर की 9वीं शताब्दी की है जो पद्मासनस्थ होने से ग्रामीणों द्वारा "बैठा देव" के नाम से पूजी जाती है। सतियों के कई स्मारक है। कलापूर्ण मंदिरों में मूर्तियां न होने से उन्हें ग्रामीणों ने पशुशाला या निवास गृह बना लिया है। अतः तीर्थ तूमैन एक प्राचीन तीर्थ है। किन्तु यह स्थान प्रकाश में नहीं आ सका ऐसा प्रतीत होता है। ... (17) भोपावर : रतलाम से बम्बई की ओर मेघनगर रेलवे स्टेशन से 40 मील की दूरी पर राजगढ़ नामक स्थान है। राजगढ़ के दक्षिण की ओर 5 मील की दूरी पर भोपावर नामक जैनतीर्थ है जो धार जिले में स्थित है। यह ग्राम माही नदी के किनारे पर बसा है। भोपावर को कुछ विद्वान् प्राचीन "भोजकट नगर" मानते हैं। किन्तु यह बात सही नहीं जान पड़ती। इसको श्री जम्बूविजयजी ने अपने "भोजकट" नामक निबंध में इस स्थान का निर्धारण किया है जो भोपावर न होकर अन्यत्र है। यद्यपि यहां जैन मतावलम्बियों का एक भी घर नहीं है किन्तु लगभग 75 वर्ष पूर्व यहां सब कुछ था। यहां एक जैन धर्मशाला और शांतिनाथ का सुन्दर शिखरबंध कोटयुक्त एक जैन मंदिर विद्यमान है। मूलनायक की प्रतिमा बारह फुट ऊंची है जो भव्य एंव तेजस्वी है। हाथ के नीचे देवियों की प्रतिमाएं हैं। मूलनायक के बांयी ओर शांतिनाथ, चन्द्रप्रभ की मूर्तियां है जिसके बाहर के भाग में अभी हाल ही में शीतलनाथ की प्रतिष्ठा करवाई गई है। ऊपरी भाग में चन्द्रप्रभु और महावीर स्वामी जम्बुस्वामी और आत्माराम की प्रतिमाएं विद्यमान है। ... Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy